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कहानी // पृथ्वीराज लोधी

एक समय की बात है कुछ गायों का झुंड गांव की गलियों से होकर गुजर रहा था तभी कोट पर बंधी हुई गायों से उन गायों का परिचय हुआ वह गाय वाली गायों से बोली बहन आपको तो बहुत आनंद आ रहे हैं आपकी तो खूब भरपूर सेवा हो रही है आपको समय से भोजन भी मिल रहा है और आपकी देखभाल भी हो रही है यहां तक की आप तो समय से स्नान भी कर लेते हैं सब आपका बहुत ख्याल रखते हैं और प्यार से आपके ऊपर हाथ भी खेलते हैं कोटे से बंधी हुई गाय बोली मैं कह रही हूं कि आपको बहुत आनंद आ रहा है आप तो खुले में घूम रही है जहां भी चाहे इधर भी चाहे उधर जा सकती हैं और हम तो अगर खुल भी जाएं तब भी हमें दोबारा पकड़ कर बांध दिया जाता है तब छुट्टी गए बोली बहन हम तो जिस खेत में भी जाएं वह खेत वाला हम पर कसाइयों की तरह अपने लत बजाते हैं बलम क्षेत्र हैं और आप तो खेतों की मांड के किनारे किनारे कटीले तार भी लगा दिए हैं जिससे हमारे भूख को मारने की नौबत आ गई है बहुत तारों से भी बहुत जख्मी हो जाते हैं हमारी तो कोई देखभाल करने वाला भी नहीं है कई कई दिन पानी तक नसीब नहीं होता है बस हमारी तो दिनचर्या भगवान के सहारे ही चल रही है हम तो रमता जोगी और बहता पानी हो गए हैं जैसे साधु जिधर चाहे उधर जा सकता है हमने तो यह समझ लीजिए पशु योनि में संन्यास ले लिया हैबस हमारा तो रखवाला भगवान ही है इसलिए बहन आप बहुत सुखी हैं आप तो धूप से भी बचते हैं बारिश से भी बचाती हैं आपका मालिक आपका ध्यान रखना है हमारा ध्यान कौन रखेगा हमारा तो भगवान ही हमारा ध्यान रखने वाला है अच्छा बहन हम चलते हैं क्योंकि आपका भी मालिक आ गया तब वह भी हम पर डंडा ही मारेगा तब गाय बोली ठीक है बहन तुम चलो भगवान आपका भला करें
रचनाकार पृथ्वीराज लोधी राजपूत
ग्राम दनियापुर, मथुरापुर जिला रामपुर उत्तर प्रदेश

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