कविता दिवस– सरोज चन्द्रा पालीवाल

आज कविता दिवस है। मेरा मानना है कि हर दिन ही कविता दिवस है। प्रकृति के स्पंदन में
कविता है, रवि के प्रकाश में कविता है। सरिता के कलकल में कविता है। झरनों के अविरल संचरण में कविता है।कवि के कल्पित ह्रदय में कविता है,वीणा के स्वर में कविता है, वायु के परिभ्रमण में कविता है। पनघट पर जाती नवयोवना की पायल की रुनझुन भी कविता है। आराध्य विश्व नियंता श्री शिव शम्भू की डमरू की ध्वनि में कविता ही सम्माहित है। मां सरस्वती जी ,की वीणा के तारों में तो कविता ही झंकृत होती है।श्री श्याम सुन्दर की बांसुरी में तो कविता ही बरसती है। सांवरिया कि रासलीला भी कविता की ही पहल है।पक्षियों का कलरव हो या मेघदूतों की गर्जना हो या वर्षा कि बूंदों का बरसना प्रकृति ने सभी में कविता रची है।मासूम की किलकारी हो या श्रमिक की छैनी से तराशना किसी पर्वत खण्ड का कविता सा ही लगता है।सितार के तार जब झनझनाते है, तो अपने आप में ही कविता सदृश वादन होता है। हारमोनियम की धुन हों या तबला पर की थाप सभी का लयबद्ध होना कविता के ही मानदंड हैं।कविता समसामयिक भी होती है और प्राचीन भी। देश भक्त जवानों को, सेना को जब कवि सीमा पर जाते देखता है तो उनके शौर्य के लिए कविता ही लिखी जाती है। किसी वीरांगना की गाथा पर जैसे महारानी पद्मिनी के जौहर पर या फिर रानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर अभिभुत हो कर कविता की ही रचना करता है !
सरोज चंद्रा पालीवाल