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लघु कथा–कठिन राह // लेखिका रश्मि अग्रवाल

 

रितेश बड़ा हँसमुख प्यारा सा लड़का था ।वह अपने मम्मी पापा के साथ एक छोटे से घर में रहता था । उसके पापा टैक्सी ड्राइवर थे कम कमाते थे पर पूरा परिवार प्रेम से रहता था । कहते हैं कि छोटा परिवार सुखी परिवार। पर भाग्य के आगे सब बेबस हैं । एक दिन टैक्सी चलाते समय एक ट्रक ने आकर सामने से ठोकर मार दिया । जिसमें रितेश के पापा की मृत्यु हो गई । जीवन की राहें कठिन हो गई । पूरा परिवार बिखर गया जब कमाने वाला ही न रहा तो घर का खर्च कैसे चलता ? माँ ने सिलाई का कार्य शुरू किया और घर के आस-पास के घरों में जा कर बर्तन,कपड़ा धोने और घर की सफाई का काम शुरू कर किया । जो भी कमाई होती, उसी से रितेश की पढ़ाई और घर का खर्च चलता । अचानक एक दिन रितेश की माँ को बहुत ज्यादा बुखार हो गया । डॉक्टर ने बताया माँ को डेंगू हो गया है । रितेश बहुत परेशान था क्या करें, कैसे इलाज करें ? सबने पैसे देने से मना कर दिया । आखिर हार कर वह रास्ते में आने – जाने वाली गाड़ियों को साफ करने का काम और सवेरे साइकिल से अखबार लोगों के घर पहुंचाने का कार्य करने लगा । माँ इलाज के बिना स्वर्ग सिधार गईं ।रितेश रोता रह गया । कुछ न कर सका । अकेला जीवन पहाड़ सी जिन्दगी । #कठिन_राह चले तो कैसे ? कोई सहारा नहीं था ,पर वो स्वाभिमानी था । अपनी कठिन राह का खुद समर्थ पथिक बनना चाहता था । उसने जी जान से मेहनत की । स्कूल में फर्स्ट आया प्रधानाध्यापक जी ने उसकी फीस माफ कर दी । साथ ही उसकी लगन देख उसे स्वयं पढ़ाना शुरु कर दिया । वो उसे अपना बेटा मानने लगे । अपने घर में उसे साथ रख बेटा बना लिया । जीवन की कठिन राह आसान हो गई । उसने अपना काम बन्द नहीं किया । अपनी मेहनत के बल पर पढ़ाई कर हर कक्षा में वो प्रथम आता गया और सफलता का एक – एक पायदान वो चढ़ता गया । बड़ा हो आइ.ए.एस, अफसर बन माता – पिता का नाम रोशन कर दिया ।

डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न

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