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लघुकथा –शून्य का भाव // लेखिका मंजू शर्मा

 

सुनैना का बेटा बहुत दिनों से घर आया था ।
जब बच्चे अपनी नीड़ में पहुँचते हैं तो घर का माहौल सुखमय हो जाता है लेकिन देखते-देखते 15 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला ।
बेटे के जाने का समय नजदीक आते देख
सुनैना रोज कुछ न कुछ पकवान बनाती !
बेटा गुस्सा करता ” माँ! क्यों परेशान होती है”
खाना तो बाहर का ही हर रोज”
माँ कहती है…कोई नहीं कुछ दिन खा ले मेरे हाथ का ।

आखिर बेटे को विदा करने का समय आ ही गया ।सुनैना इधर-उधर अपनें आँसुओ को छुपाते हुए,बेटे को समझाती है।
” ठीक से रहना, किसी बात की चिंता मत करना” “बेटा बोला माँ ! मैं ठीक से रहता हूँ लेकिन आप अपना ध्यान रखना ” एक बात और आप मेरे साथ एयरपोर्ट नहीं आना मैं पापा के साथ चला जाऊँगा ।
सुनैना बेटे के भाव को समझ गई और बोली
ठीक है नहीं आ रही हूँ मैं ,और घर से विदा कर दिया ।

पहुँच कर बेटे का फोन आया माँ! मैं पहुँच गया ठीक से
“सुनैना बोली ठीक है बेटा, खुश रहना ।उधर से आवाज़ आई माँ ! अगली बार से मैं अकेला ही आ जाया करूंगा घर से एयरपोर्ट आप दोनों ही मत आना ! क्युँ क्या हुआ बेटा??
“माँ! आप दोनों की आँखों में आँसू देख मेरे कदम आगे नहीं बढ़ते और आपनें मुझे सबल बनाने में जो मेहनत की है वो मुझे पीछे नहीं मुड़ने देती । एयरपोर्ट से ऐरोप्लेन तक का सफ़र मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है और मैं समझ नहीं पाता हूँ,सही क्या है । बेटा ये सब कहे जा रहा था।
सिसकियां दबाती…
सुनैना भाव शून्य सी कुछ नहीं बोल पाई !!!!

मंजू शर्मा

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