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मामा (कहानी)  // लेखक श्रीनिवास एन

 

सागर के समीप एक गांव है। उस गांव में अपनी कुटुंब के साथ बालिका रहती है। उसकी मां बाप कम काज केलिए दूसरे प्रांत को जाते हैं।अचानक तेजी से ठंडी हवा आ रहे हैं। सर्दी से बालिका कांप रही है,इसलिए सर्दी को मिटाने के घर में अग्नि लगती है।उस समय मां बाप घर की वापस नहीं आती है। अग्नि तेजी से जलते हैं
बालिका भय से चिल्लाती है,उस समय गांव में कोई नहीं है,लेकिन एक बालक धैर्य,साहस से जलते हुए घर और बालिका को बचा सकते हैं।
शाम के सब लोग अपना घर को वापस आते हैं। ये सभी देखकर बालक को प्रशंसा कर रहे हैं,लेकिन बालिका के पिता अपने घर में बालिका को देखकर क्रोध से डांटते हैं। तब बालिका अपने पिता को यह विषय बताती है।बच्चा से कहा कि मुझ को माफ करो,क्योंकि मेरा घर और मेरी बेटी की रक्षा करती है। इस कारण से तुम को तारीफ कर रहा हू।तुम मेरे परिवार के साथ रहो। बालक सोचकर कहा कि मामा चलिए।
तब बालिका के पिता अचरज हुआ…..!

श्रीनिवास एन

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