मदद- एक संस्मरण // लेखिका शिखा खुराना

मैं पांचवीं कक्षा में उसी सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। जहां मेरी मम्मी भी टीचर थीं। हमारी मुख्य अध्यापिका बड़ी कठोर थीं। आजकल तो विद्यार्थियों की पिटाई का भी प्रावधान नहीं है। हमें तो पीट पीट कर पढ़ाया जाता था। हमारी मुख्य अध्यापिका उम्र में बड़ी थीं और मेरी मम्मी को बहुत प्यार मान देती थीं। मेरे पापा को वो अपना बेटा मानतीं थीं और इस नाते वो मुख्य अध्यापिका के साथ साथ मेरी दादी भी थीं। तो कक्षा में जब कभी बच्चों की पिटाई होती थी तो मेरी पिटाई बाकी बच्चों से ज़्यादा की जाती ये कहकर कि अपने बच्चों को तो ज़्यादा सुधारने की जरूरत है। वैसे वो दिल की बहुत अच्छी थीं। मम्मी को एक बार कहीं सेमिनार में जाना था स्कूल से तो जल्दी जल्दी में मेरा लंच बॉक्स मम्मी के बैग में ही रह गया। उस दिन भी लंच से पहले मेरी पिटाई हुई थी तो मेरा मूड बहुत खराब था। मैं चुपचाप मुंह फुलाकर बैठी थी और लंच भी नहीं था मेरे पास। मुख्य अध्यापिका ने मुझे बुलाया और पूछा कि मैं लंच क्यों नहीं कर रही तो मैंने बताया कि लंच बॉक्स मम्मी के पास है। तो उन्होंने मुझे एक चवन्नी दी और बोला जाकर स्कूल के बाहर झाबे वाले से कुछ लेकर खा लूं। मैं चवन्नी पाकर सारा गुस्सा भूल कर खुश हो गई। उस समय पांचवीं कक्षा के बोर्ड के पेपर होते थे और जमकर तैयारी होती थी बोर्ड की। रविवार को भी कभी स्कूल में तो कभी किसी टीचर के घर पर तैयारी के लिए क्लास होती थी। परीक्षा सेंटर पर जाने के लिए सब विद्यार्थी स्कूल में इकट्ठा होकर टीचर के साथ जाते थे। सेंटर पर जाने से पहले मुख्य अध्यापिका हमें शुभकामनाएं देती थी और समझातीं थी कि हमें परीक्षा कैसे देनी हैं। उनको अपने स्कूल के रिजल्ट की चिंता रहती थी इसलिए विद्यार्थियों से कहतीं कि अगर आपके आगे पीछे के साथी को मदद की जरूरत पड़े तो थोड़ी मदद कर देना कि वो भी पास हो सके। उस दिन हमारा सामाजिक ज्ञान का पेपर था। मम्मी ने जम के तैयारी कराई थी। मुझे पूरा पेपर अच्छी तरह आता था। मैं जल्दी जल्दी लिखने लगी। मेरे पीछे जो लड़की बैठी थी उसे पेपर नहीं आता था और वो मुझसे बार बार पूछ रही थी और ना बताने पर धमका भी रही थी कि वो मुख्य अध्यापिका को बता देंगी मैंने उसकी मदद नहीं की।
तो मुझे उनके डर से उसे अपना पेपर दिखाना पड़ा।अब वो लिखने में भी बहुत धीमी थी तो मैं अपने हर प्रश्न का उतर लिखकर उसकी नकल उतार लेने तक उसका इंतजार करती फिर दूसरा प्रश्न करती। ऐसा करते करते समय समाप्त हो गया और मेरा पेपर छूट गया। पर मुझे तसल्ली हुई कि मैंने मुख्य अध्यापिका की बात का मान रखा था। मम्मी ने घर आकर पूछा तो मैंने सारा किस्सा सुना दिया। उसके बाद मेरी इतनी पिटाई हुई कि जीवन में कभी दोबारा पेपर नहीं छूटा।
शिखा