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नई शुरुआत (लघुकथा) // डॉ मीरा कनौजिया

 

राजन की बहू चिल्लाते हुए कह रही,,आज से तुम्हारी मांको नहीं रखूंगी,क्योंकि बिस्तर फैलाकर रखती , मुझे खाना देना पड़ता , करूं अपने बच्चों का, कि तुम्हारी मांका,इनको अनाथालय ,कहीं छोड़ आओ।
राजन ड्यूटी चला गया, सुन नहीं पाया,सारी बाते। विधवा मां चुपचाप , गठरी संभाल दबे पांव निकल पड़ी।
नंगे पैर चलते हुए लड़खड़ा गिरी, बेहोश हो गई, ममता नाम की महिला निकली, जो राजन के ऑफिस साथ काम करती। पहचानते हुए मां को ले गई। ममता के लिए अनोखी पहल थी। मां ने सब कुछ बताया।
राजन को पता चला, मां ममता के यहां है, लेने गया, लेकिन ममता ने राजन की मां को दोबारा उनके घर नहीं भेजा, क्योंकि राजन की पत्नी के सामने उसकी बिल्कुल भी नहीं चलती थी। ममता की मां नहीं थी। मां और ममता के अंदर एक नई उम्मीद जगी।
मां को बेटी, बेटी को मां मिली।
यह उसके जीवन की नई शुरुआत , और सुंदर सी पहल।

डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

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