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नज़र पर नज़र की कहानी // लेखिका प्रवीणा सिंह राणा

 

सुनहरी सुबह थी। नीला आसमान और खिली धूप में रिया अपने कॉलेज के बगीचे में किताब पढ़ रही थी। उसकी आँखें किताब पर थीं, पर मन कहीं और भटक रहा था। तभी उसने महसूस किया कि कोई उसे दूर से देख रहा है। उसने सिर उठाया, तो सामने वाली बेंच पर एक लड़का बैठा था। उसकी नज़रें सीधी रिया पर थीं।रिया थोड़ा असहज हुई लेकिन खुद को संयमित किया। वह उस लड़के को पहले कभी नहीं देखी थी। कुछ ही देर बाद वह लड़का धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। रिया ने सोचा कि वह उससे कुछ कहेगा, लेकिन वह बिना कुछ बोले बगल की बेंच पर बैठ गया।
अगले कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। रिया को उस लड़के की चुप्पी रह-रहकर खटकती। आखिर एक दिन, उसने खुद ही हिम्मत करके पूछा, “क्या बात है? आप मुझे लगातार देख रहे हैं, कुछ चाहिए?”

लड़के ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। पर आपकी नज़रें कुछ कहना चाहती हैं।”रिया को यह सुनकर अजीब सा लगा। उसने चिढ़कर कहा, “मेरी नज़रें? मैं तो बस पढ़ रही थी।”लड़के ने शांत स्वर में कहा, “आपकी नज़रें आपकी कहानी बयां कर रही थीं। मैं एक चित्रकार हूँ और भावनाओं को चित्रों में कैद करता हूँ। आपके चेहरे पर जो संकोच और उलझन थी, उसने मुझे अपनी तरफ खींचा। मैंने आपके लिए एक स्केच बनाया है।”यह कहकर उसने अपनी डायरी निकाली और रिया को एक पन्ना दिखाया। उस स्केच में रिया किताब पढ़ते हुए नजर आ रही थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ सवाल और बेचैनी थी। रिया उस चित्र को देखकर चौंक गई। यह सच में उसकी भावनाओं को दर्शा रहा था।उस दिन रिया और वह लड़का, जिसका नाम आकाश था, पहली बार एक-दूसरे से खुलकर बात करने लगे। नज़रें जो पहले अनजानी थीं, अब दोस्ती का पुल बन चुकी थीं।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। आकाश और रिया की मुलाकातें बढ़ने लगीं। रिया के चेहरे की बेचैनी धीरे-धीरे मुस्कान में बदल गई। आकाश ने अपनी नज़र से रिया की आँखों में छुपे सुख-दुख को समझा, और रिया ने उसकी नजर से दोस्ती और भरोसे का रिश्ता महसूस किया।इस तरह, नज़र पर नज़र से शुरू हुई उनकी कहानी एक खूबसूरत दोस्ती में बदल गई।

प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

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