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प्रेम और कर्तव्य // लेखिका बबिता शर्मा

 

प्रेम और कर्तव्य दोनों ही एक सीमा तक भिन्न है जिसमें प्रेम अंतर्मन से उपजा हुआ ऐसा अंकुर है जो हमें भावनात्मक रूप से किसी के साथ जोड़ देता है जबकि कर्तव्य एक ऐसा मार्ग है जो हमें जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहने हेतु तत्पर रखता है ।

प्रेम उत्पन्न होने पर हम कभी गैरजिम्मेदार भी सिद्ध हो जाते है ।आंखों पर प्रेम का आवरण होने के कारण हम किसी की गलतियों ओर कमियों को नजर अंदाज कर अपने ही कर्तव्य से भटक जाते है और भूल जाते है कि हम हमारा कर्तव्य क्या है। इसीलिए प्रेम के साथ हमे अपने कर्तव्यों का भी भान होना चाहिए ।

कर्तव्य का पथ हमें विकास की ओर अग्रसर कर ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचाने में बहुत ही सशक्त भूमिका निभाया है जबकि प्रेम हमारे मन को ओर दिमाग को अवरुद्ध कर कई बार पराजित कर गैरजिम्मेदार सिद्ध कर देता है । कर्तव्य पथ एक ऐसा छायादार वृक्ष है जिसमें सबको असीम आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है और दूसरों को भी अपने कर्तव्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

जीवन में सबके कर्तव्य अलग अलग होते है जैसे एक इट का कर्तव्य परिवार की जरूरतों को सही समय पर पूरा कर अपने परिवार को सशक्त बनाना है जबकि माता का कर्तव्य पिता के कर्तव्य से भिन हो जाता है माता अपने प्रेम से पूरे परिवार को सींच सबको उनके कर्तव्य कहां कराती है । जो कि अपने आप में सामंजस्य का बहुत बड़ा उदाहरण सिद्ध होती है।

इसीलिए प्रेम के साथ साथ कर्तव्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए ।कभी कभी कर्तव्यों को सीखने और सीखने में प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । अतः जीवन पथ पर हमें प्रेम में अंधा न होकर कर्तव्यों के प्रति सक्रिय होना चाहिए।

मेरे अपने स्वयं के विचार
बबिता शर्मा

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