प्रेम की कोई पराकाष्ठा नहीं होती प्रेम संयोग में असीम होता है और वियोग में अनन्त। // मंजू शर्मा

…’प्रेम’… दिल की अतल गहराईयो का एक खूबसूरत अहसास है।
सोच लो तो चेहरा गुलाब बन खिल जाता है।
जी लो तो जीवन उपवन बन संवर जाता है ।
बांट दो तो दौगुना लौटकर आता है ।
पाने की जिद में जाने कितना कुछ बिखर जाता है।
एक मासूम -सा सुखद अहसास जीवन में चार चांद लगा देता है । इसे जो महसूस करें वो भवसागर से तर जाता है ।
ये न पेड़ पर लगता है,न लताओं में खिलता है और न बाजार में मिलता है।
ये तो हर संवेदनशील इंसान के दिल से होकर रूह में बसता है।
प्रेम सिर्फ कहने और पाने से परे है। एक सूक्ष्म -सा सुखद अहसास…खुदा को पाने की जैसी प्यास ।
कबीर ने पाया तो संत बन गया। मीरा ने पाया तो भक्ति,राधा ने पाया तो अमर हो गया प्रेम और रूक्मिणी ने पाया तो मर्यादा बन गया।
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
आज दिखावे से भरी दुनिया में लोग जरूरतों से प्रेम करते हैं। एकसाथ आसमान छूता प्रेम धड़ल्ले से गिर जाता है। सिर्फ यहां तक ही समाहित नहीं है…किसी कारण वश अगर प्रेमिका ने मना कर दिया तो शैतान का रूप धारण कर उसकी हस्ती ही मिटा देना चाहता है।
इस हैवानियत को कैसे प्रेम कहा जाए? “ये कैसा रूप है प्रेम का?” मेरा नहीं तो किसी का नहीं… प्रेम तो त्याग, समर्पण का नाम है। फिर एक ही दिन में कैसे नष्ट हो सकता है। प्रेम का ऐसा रूप सिर्फ वासना को जन्म देता है।…जो आज के दौर में देखने को मिल रहा है। कब समझेगी युवा पीढ़ी प्रेम की पवित्रता को…
वैसे तो हर किसी के लिए प्रेम की अपनी परिभाषा होती है।कोई पाने की जिद में अडिग रहता है तो कोई दूर रहकर भी निभाता चला जाता है।
कुछ लोग ढाई आखर में प्रेम को समेटना चाहते हैं तो कुछ एकतरफा प्रेम भी जीवन भर निभाते हुए खुश रहते हैं।
हालांकि ये सच है कि प्रेम को परिभाषित करना आसान नहीं। प्रेम का मतलब ही है शून्य हो जाना। जब आप शून्यता को महसूस करने लगोगे वहीं प्रेम की प्रथम सीढ़ी होगी । मोहमाया से दूर,देह और स्वार्थ के परे होता है। जिससे प्रेम है उसको अपनी हर अवस्था में शामिल कर लेता है समर्पित भाव के साथ खुद बिखरकर भी अपने प्रेमी को सदैव आनंदित देखना है। यही प्रेम की पराकाष्ठा है।
बिगड़ता मौसम भी खुशनुमा लगने लगता है। बस यही प्रेम है।
इसलिए कहते हैं।
इतिहास गवाह सच्चे प्रेमी कभी नहीं मिले…असल में
प्रेम अपूर्णता से पूर्णता की और जाने वाला सतमार्ग है।ये रूहानी सफर है। सच्चा प्रेम कभी-कभी हठी भी हो जाता है जो आपसे असाध्य से असाध्य काम भी करवा लेता है।
जैसे सतयुग का वो शाश्वत प्रेम । प्रभु राम! और सीता मईया का…
जिन्होंने अपनी प्रियतमा की खोज में मनुष्य की भांति विलाप किया । हर एक पशु-पक्षी और लताओं से भी वार्तालाप करते हुए सीता का पता पूछा और सागर पर सेतु बना डाला। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो एक हृदय में सृजित होकर तरंग बन दूसरे हृदय को स्पर्श कर बगैर किसी माध्यम के एक-दूसरे को बिना बंधन भी बांधे रखता है। जहां सच्चे प्रेम की बात आती है वहां राम सेतु मधुर स्रोत बनकर प्रवाहित होता है तो जीवन को अमृतमय कर देता है।
वर्तमान समय में मैं आपको मिलवाती हूं ऐसे ही प्रेमी दशरथ मांझी जी से जिनके प्यार की मिसाल को सारी दुनिया ने सलाम किया उन्होंने अपनी ही पत्नी जिसे वे जान से भी अधिक प्यार करते थे उसके लिए 22 साल तक कठिन तपस्या करके वह कार्य कर दिखाया जिससे वो विश्व प्रसिद्ध कहलाए और ऐसा कार्य शायद ही कोई कर पाए परंतु सच्चा प्रेम तो यही है उन्होंने 55 किलोमीटर की दूरी जो अत्री और वजीरगंज में एक पर्वत के कारण आती थी उसे कम कर दिया जिसके कारण उनकी पत्नी का देहांत हो गया था । हुआ यूं था कि उनकी पत्नी फागुनी देवी उन्हें खाना देने पर्वत के उस पार आती थी जिसकी दूरी बहुत अधिक थी। एक बार जब वह खाना लेकर जा रही थी तो उसी पहाड़ी दर्रे में गिरकर उनकी मृत्यु हो गई और समय पर उनका इलाज भी नहीं हो पाया उस समय दशरथ मांझी ने यह प्रण लिया कि वह अपने प्रेम को तो नहीं बचा सके परंतु उन्होंने एक पहाड़ से अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला तो लिया और ये भी सोचा कि वह किसी और के प्रेम को आंच नहीं आने देंगे । उस धुन के पक्के व्यक्ति ने अपने अथक परिश्रम से छैनी और हथौड़ी की मदद से उस 55 किलोमीटर के रास्ते को 15 किलोमीटर कर दिया। पहाड़ को काटकर उसमें सड़क का निर्माण कर दिया। पहले पहले गांव वालों ने उन पर ताने कसे लेकिन बाद में जब उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी और 30 फुट चौड़ी सड़क बनाई जो कि 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर बनाई गई थी उनके इस काम को देख कर लोगों ने उन्हें सर आंखों पर बिठा लिया। दोस्तों प्यार का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि उन्होंने एक पहाड़ से अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला तो लिया, साथ ही साथ न जाने कितने लोगों के कठिन जीवन को सरल बना दिया। तो आज कुछ इसी प्रकार के प्यार की आवश्यकता है जो लोगों के काम आ सके। किसी की याद में ताजमहल बना देना और उसके बाद मजदूरों के हाथ काट देना यह कतई प्रेम नहीं हो सकता क्योंकि प्रेम कभी भी क्रूर नहीं होता। प्रेम तो वह है जो अपने प्रेम की खातिर पहाड़ों को काटकर सब के दिलों में जगह बना लेता है।
बात मुद्दत से जो थी मेरे लबों पर वो आज दिल में उतर आई।
काश तुम पढ़ पाते कभी मेरे प्रेम की गहराई।
ऐसा ही प्रेम हमारा वैलेंटाइन होना चाहिए जो प्रेम को पहचाने सदियों पुराना वाला प्रेम आज भी निहित है और हमेशा रहेगा हम सभी के दिलों में।
मंजू शर्मा
कार्यकारी संपादक