सादगी — स्वर्णलता सोन

और उसने एक छोटी सी बिंदी अपनें माथे पर लगा कर दर्पण में देखा,सच में वो सादगी की प्रतिमूर्ति लग रही थी,इतने में मां की आवाज आई,”क्या कर रही हो लता?कितनी देर हो रही है,लड़के वाले आने वाले ही होंगे।”
मां कमरे में आ चुकी थी,”अरे तुमने ये सफेद साड़ी क्यों पहनी है ,लड़के वाले क्या कहेंगे,क्या कोई अच्छी सी रंगीन साड़ी नहीं है?”मां ने पूछा। “मां वो मुझे देखने आ रहे हैं या साड़ी को”लता बोली।
इतने में ही बाहर गाड़ी रुकी,”लो वो लोग आ भी गए,अब तो कपड़े बदलने का समय भी नहीं है”।मां ने कहा।।लता मुस्कुरा उठी।
और दरवाजा खोलने लगी,दरवाजा खोलते ही उसकी आंखें नितिन से चार हो गईं,दोनो एक दूसरे को देखते ही रह गए,नितिन ने इतनी खूबसूरत स्त्री कभी नहीं देखी थी, जो सफेद साड़ी में मां सरस्वती का ही रूप लग रही थी।
“क्या हुआ “मां ने कहा। कुछ सकपका के लता ने कहा “कुछ नहीं मां”।
अंदर आकर की लड़के की मां भी लता को देखती ही रह गई!इतनी सादगी,बड़ी बड़ी आंखें,मुस्कुराते हुए होंठ,हंसिनी जैसी चाल,नागिन जैसे लहराते बाल,सच में देवी लग रही थी।
उसने तुरंत हां कर दी,और कहा, “मैं तो बहुत से गहने लाई थी बहू के लिए,पर इसे तो किसी श्रृंगार की जरूरत ही नहीं है”हंस कर उसने अपना हार उतार के लता के गले में डाल दिया। नितिन भी लता को निहार कर मुस्कुरा रहा था,सच ही लता की सादगी ही उसका श्रृंगार थी।
स्वर्ण लता सोन