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संगति का परिणाम // लेखक सन्तोष आनंदेश्वर पाण्डेय

 

एक जंगल में एक वृक्ष पर हंस रहता था कुछ दिनों बाद उसी वृक्ष पर एक कौआ आ रहने लगा दोनो में मित्रता हो गई!
एक दिन कौए ने कहा चलो अपना तीर्थ स्थल दिखाते हैं हंस चल पड़ा दोनों पहुंचे जहां नरकंकाल जानवरों की हड्डी पड़ी थी कौआ खाना शुरू कर दिया बेचारा हंस बदबू से मरा जा रहा था उसने वहां से निकल जाना ही उचित समझा!
दोनों उड़ते हुए मानसरोवर के किनारे पहुंचे जहां सुंदर वातावरण में हंस विश्राम करने लगा फिर उपवन में फल खाने चल दिया।
कौए को ये मनोरम सुगंध अच्छा नहीं लगा उसी समय तीर धनुष लिए राजकुमार शिकार को निकले थे मौका देख कौए ने उनके ऊपर गंदा कर दिया और उड़ गया नाराज राजकुमार ने तीर चलाया जो हंस को जाकर लगा वह नीचे गिर गया गिरते हुए बोला”
देखा ताल तलैया मैने कीच का
कभी ना करना साथ भूलकर नीच का
कहानी का मूल उद्देश्य साथी सहपाठी भी सोचकर बनाना चाहिए!

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