संस्मरण मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है, — डॉ रश्मि अग्रवाल

जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं, जिन पर लोगों को विश्वास करना पड़ता है । कुछ अलौकिक बातें, घटनाएँ इसी क्रम से सम्बद्ध होती हैं।
ऐसी ही एक घटना मेरे पतिदेव स्वर्गीय संजीव रत्न जी के साथ घटी | हम राँची झारखण्ड में रहते हैं । पर इस घटना का पूर्वाभास बनारस में मेरे परिचित एक महापुरुष को हो गया था । वो बनारस में मेरे मायके में आए। उन्होंने मम्मी से बात किया और बताया कि इतने बज कर इतने मिनट पर संजीव जी का एक्सीडेंट होगा । इसमें इनकी जान जाने की संभावना है , पर इनको मैं बचाऊँगा । उन्होंने यह सब एक कागज पर लिख कर अपने बेटे को पहले ही दे दिया था ।
मम्मी ने मुझे कुछ नहीं बताया । वो सोचीं कहीं बीनू ( मायके में पुकारा जाने वाला मेरा नाम ) ये सुन कर घबड़ा न जाए ।
उस दिन सुबह ये नाश्ता कर फैक्ट्री जाने लगे ।इनका टिफिन मैंने तैयार कर दिया था । अपना टिफिन ले कर यह फैक्ट्री जाने के लिए स्कूटर से निकले । आधी दूर ही गए थे कि रास्ते में एक मोटरसाइकिल से, जो एक पुलिस वाला चला रहा था उससे इनकी स्कूटर की टक्कर हो गई । उस पुलिस वाले की ही गलती थी । गलत दिशा से आ कर उसने जोरदार टक्कर मारी थी । इनके स्कूटर का आगे का हिस्सा बहुत ज्यादा टूट गया था और टिफिन उछल कर सड़क पर ऐसा गिरा, कि वो एकदम दब कर पिचक गया । सारा खाना सड़क पर ही फैल गया । इतना सब हो गया पर इनको ऐसा अनुभव हुआ जैसे किसी ने स्कूटर से उठा कर इन्हें जमीन पर बैठा दिया हो । इन्हें जरा भी चोट नहीं आई थी । गलती उस पुलिस वाले की थी, किन्तु अपनी गलती न मानते हुए इनसे बहस करने लगा और मोटरसाइकिल बनवाने के नाम पर रू 500 / – ले लिया । इन्होंने बहस न करते हुए उसको रुपए दे दिए । जब ये फैक्ट्री पहुँचे तो वहाँ से फोन कर मुझको बताया कि आज ऐसी – ऐसी घटना हो गई ।मैंने पूछा आपको चोट तो नहीं लगी । वो बोले, नहीं ! मुझे जरा भी चोट नहीं लगी बल्कि ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी ने मुझको बचा लिया हो, क्योंकि जिस हिसाब से स्कूटर टूटा था उस हिसाब से मुझको बहुत ज्यादा गंभीर चोट लगती पर मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है । यहाँ यही कहावत सिद्ध हुई ।
बाद में मैंने मम्मी को फोन कर के यह सारी घटना बताई, तो उन्होंने कहा । मुझे पहले ही इस घटना के बारे में वो महापुरुष बता गए थे पर मैंने तुम्हें नहीं बताया तुम घबरा जाती । चलो ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद देती हूँ कि दामाद जी को कुछ नहीं हुआ और वो सही सलामत हैं।
बाद में वो महापुरुष मम्मी के पास आए तो उन्होंने बताया । जिस समय इनका एक्सीडेंट हुआ । वो उस समय स्कूटर से एक सुनसान रास्ते पर जा रहे थे । अचानक उनको चलती स्कूटर से किसी अदृश्य शक्ति ने उठा कर जमीन पर पटक दिया । वो दो घण्टे वहीं बेहोश पड़े थे । होश आने पर किसी तरह वो स्कूटर चला कर घर पहुॅचे। उन्होंने इन पर आने वाली आफत को (मुसीबत को ) अपने ऊपर ले लिया था और संजीव जी की जान बचा ली । सुनने में ये मनगढ़ंत वाकया लगता है । शायद ही कोई इस घटना पर विश्वास करे, पर ये मेरे खुद पर बीती आपबीती है। अत: इस घटना को सब सच ही समझिए ।
निर्विवाद रूप से मैं तो यही कह सकती हूँ कि मारने वाले से बचाने वाले बड़े होते हैं । ऐसे समय पर यही साथ देते हैं।
डॉ रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’