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विधा-लघुकथा बदलता परिवेश // लेखिका विमला रावत

 

दूर सुरम्य पहाड़ियों पर एक छोटा सा गाँव था, जहाँ कविता अपनी नानी के घर अपनी माँ और दो छोटे भाई -बहन के साथ रहती थी। कविता दस वर्ष की थी l उसके पिता एक गैर जिम्मेदार व्यक्ति थे और बात-बात में उसकी माँ को मारते पीटते थे। उसकी माँ को मजबूरन अपने मायके में आना पड़ा।
कविता एक समझदार और पढ़ने में होशियार लड़की थी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और कविता ने बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली थी।
घर की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कविता ने एक निर्णय लिया और अपने मामा के पास शहर आ गईं। शहर आकर कविता ने ट्यूशन देना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद माँ और भाई बहन को भी अपने पास बुला लिया और किराये के मकान में रहने लगे।
अब कविता को विवाह योग्य होता देख माँ ने कविता से विवाह की बात की तो कविता ने दृढ़ता से कहा कि ज़ब तक मेरे दोनों भाई -बहन पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते मैं विवाह नहीं करुँगी। मैं घर की बड़ी बेटी हूँ और अपना फ़र्ज निभाना बखूबी जानती हूँ l
“लोग क्या कहेंगे?” माँ ने चिन्तायुक्त होकर कहा। कविता ने बड़े प्यार से माँ को समझाया कि “माँ जमाना बदल रहा है, समाज बदल रहा है और हमारा परिवेश बदल रहा है। मैं अपनी जिम्मेदारियों को निभाकर आपकी इच्छानुसार समय पर विवाह कर लूँगी।”
माँ के चेहरे पर संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे।

बिमला रावत,
ऋषिकेश, उत्तराखण्ड

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