आलेख—-“महिला सशक्तिकरण और भारतीय समाज” लक्ष्मी चौहान

समाज को सुंदर एवम् सुव्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने में महिला समाज का अद्वितीय स्थान है। इसी वजह से भारतीय संस्कृति मातृ प्रधान है। धरती और देश की नदियों को भी मातृ स्वरूप में पूजा जाता है।
भारतवर्ष की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है। ऐसे में देश की उन्नति और वैश्विक उन्नति के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण की बात समाज में रह-रह कर उठती रही है।
महिला सशक्तिकरण का मतलब है, महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक, और मानसिक रूप से सशक्त बनाना। इससे महिलाएं अपने जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकती हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं।
महिलाएं समाज में एक अभिन्न भूमिका निभाती हैं। वे परिवार की रीढ़ ही नहीं वरन हमारे समाज के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सदियों से महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर उन्हें हाशिये पर धकेल दिया जाता रहा है।भारतीय समाज में कई रिवाज, मान्यताएं और परंपराएं ऐसी हैं जो महिलाओं के उत्थान और विकास में बाधा बनती हैं।महिला सशक्तिकरण से हाल के वर्षों में समाज में महिलाओं की स्थिति पर सुधार हुआ है वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं लेने लगी हैं जिससे उनका सामाजिक जीवन स्तर ऊँचा उठा है।हालांकि शहरों की तुलना में गाँवों में स्थिति अभी ज्यादा बेहतर नही है।आज भी गाँवों में महिलाओं को शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी भटकना पड़ता है। महिलाएं कई सामाजिक प्रतिबंधों से बँधी हुई हैं। इसके बावजूद महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पहले से ज्यादा जागरुक हो गई हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और मातृ दिवस ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। इन दिवसों पर अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करने के लिए महिलाओं को सम्मानित कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
महिलाओं को यदि सशक्त किया जाता है तो उसके अनेक लाभ महिलाओं को मिलेंगे, वे अपने जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फ़ैसले ले सकती हैं। घर परिवार और समाज में बेहतर ढंग से अपना जीवन निर्वाह कर सकती हैं। महिलाएं समाज और देश में अपने विचारों से बदलाव ला सकती हैं। लिंग आधारित असमानताओं के ख़िलाफ़ भी वे आवाज़ उठा सकती हैं। इसके अलावा महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, करियर, और जीवनशैली को और बेहतर बना सकती हैं।
शिक्षा महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है।महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नही मिल सकता जिसकी वह हमेशा से ही हकदार रही है।आज महिलाएं अपने घर और परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी अपनी कार्य कुशलता से अपनी योग्यता का लोहा मनवा रही हैं।
महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार भी विभिन्न स्तर पर अनेक पहल शुरू कर रही है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति बनाये जाना। इसके तहत सरकार ने विविध योजनाएं बनाई हैं।उनमें महिला उद्यम निधि योजना, मुद्रा योजना, अन्नपूर्णा योजना, और देना शक्ति योजना प्रमुख योजनाएं हैं।
इसके अलावा महिला सशक्तिकरण के लिए शासन स्तर पर अनेक प्रयास भी किये जा रहे हैं, जैसे महिलाओं में सामाजिक जागरूकता बढ़ाना, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, दहेज निषेध, मानव व्यापार को रोकना, महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में आरक्षण तथा महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर समान अवसर उपलब्ध करवाना।
निष्कर्षतः देखा जाय तो भारतवर्ष में निःसंदेह महिलाओं की शक्ति में वृद्धि हुई है। कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है, जहां महिलाओं की सहभागिता किसी भी रूप में किसी से भी कम हो। परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण और प्रगति के लिए यह आवश्यक भी है।
आज जिस तरह से हमारा देश आर्थिक तरक्की कर आगे बढ़ रहा है तो महिला सशक्तीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करना और भी आवश्यक हो गया है। क्योंकि किसी भी देश की सामाजिक व आर्थिक प्रगति उसकी महिलाओं की प्रगति पर भी निर्भर करती है। हम सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए। महिलाओं के प्रति लोगों की सोच बदल रही है। फिर भी इस दिशा में हमें प्रयास करने की आवश्यकता है।
किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी।” वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है।
श्रीमती लक्ष्मी चौहान
कोटद्वार, उत्तराखंड