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आलेख — “समस्याओं से जूझते वरिष्ठ जन” –नरेश चन्द्र उनियाल

 

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धौपसेविनः,
चत्वारि तस्य बर्धन्ते, आयुर्विद्यायशोर्बलम्।
कक्षा 6 में कभी उपरोक्त लिखा हुआ श्लोक पढ़ा था, जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति नित्यप्रति वृद्ध /बुजुर्ग /वरिष्ठ जनों को ससम्मान अभिवादन (प्रणाम ) करता है और नित्य बुजुर्गों की सेवा करता है उनकी चार चीजें (आयु, विद्या, यश और बल ) बढ़ती हैं।
किन्तु आज के परिपेक्ष्य में यह सारी बातें सिर्फ नीति वचन तक ही सीमित रह गई हैं, व्यावहारिक जीवन में इन बातों का अब कोई महत्व और मतलब नहीं रह गया है। परिवार एकाकी होते जा रहे हैं, परिवार के सुदृढ़ स्तम्भ बुजुर्ग को सब दरकिनार करते जा रहे हैं। हम दो हमारे दो तक ही सब सिमटकर रह गया है अब परिवार…
भारतीय समाज में ज्यों-ज्यों पश्चिमीकरण और भौतिकवाद का विकास हुआ त्यों-त्यों घर के बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार होते चले गये। अंधाधुंध धन कमाने और स्टाइलिस्ट बैभवपूर्ण जीवन जीने की लालसा में संयुक्त परिवार विघटित होते चले गये, ऐसे में समाज का बुजुर्ग व्यक्ति एकाकी होता जा रहा है और स्वाभाविक ही है कि वह विविध समस्याओं से घिरता चला जा रहा है। वरिष्ठजनों की प्रमुख समस्याओं को निम्नवत् वर्गीकृत किया जा सकता है।
*पारिवारिक एवं सामाजिक समस्या*- चूंकि वुजुर्ग व्यक्ति वृद्धावस्था में शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है, नौकरी से सेवा निवृत्ति के बाद परिवार या समाज में उसके मान सम्मान में भी कमी आने लगती है और लगभग परिवार से भी उसका अलगाव हो जाता है, ऐसे में व्यक्ति के अन्दर हीनभावना आने लगती है..उसे लगता है कि वह परिवार /समाज के लिए अवांछित हो गया है। समाज के लिए वह कुछ कर भी नहीं पाता है… इस तरह वह अवसाद का शिकार हो जाता है।
*एकाकीपन* – घर से निकाल दिए गये, वृद्ध आश्रमों में रख दिए गये या घरों में अकेले छोड़ दिए बुजुर्गों को अकेलापन काटने को दौड़ता है। वह किसी से अपनी व्यथा बयां नहीं कर पाता है।
*मानसिक समस्या*- इस अवस्था में मित्रों के निधन की खबर भी सुनने को मिलती है।अधिकांश वरिष्ठों का जीवनसाथी भी साथ छोड़ चुका होता है तो वह अपनी बात किसी से साझा नहीं कर सकता है। बस कुढ़ना ही उनकी नियति बन जाती है और वे मानसिक रुग्णता का शिकार हो जाते हैं।
*स्वास्थ्य समस्या*- वृद्धावस्था में स्वास्थ्य भी इंसान का साथ छोड़ने लगता है। कभी कुछ बीमारी तो कभी कुछ…. बुजुर्ग चिड़चिड़े हो जाते हैं।अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
*आर्थिक समस्या*- वुजुर्गों के पास धन का भी अभाव होने लगता है, अर्थ के मामले में दूसरों पर उनकी निर्भरता बढ़ जाती है।यदि वे पेंशनर भी हैं तो बैंक /पोस्ट ऑफिस आदि में लाइन में लगकर पैसा निकालना उनके लिए दूभर हो जाता है। इसी प्रकार अपनी आवश्यकता की चीजों की खरीद फरोख्त करने में भी वे सक्षम नहीं हो पाते हैं और अपनी बेबसी पर अश्रु बहाते रहते हैं।
*समाज /परिवार में अनादर की समस्या*- यद्यपि आज महिलाओं ने समाज को बहुत ऊँचाइयाँ दी हैं, उनका अत्यधिक उत्कर्ष हुआ है, तथापि आज भी प्रायः समाज में पुरुष प्रधान परिवार ही दिखाई पड़ते हैं। इसका परिणाम होता है कि जिस पुरुष की बात परिवार में हर कोई सुनता /मानता था, वुजुर्ग होने पर जब वही परिवार उसको महत्व नहीं देता, उसका अनादर करता है तो वह अन्दर से टूट जाता है… किसी से अपना दर्द बयां भी नहीं कर पाता है।
*निष्कर्ष*- इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे समाज में वरिष्ठ जन अनेकानेक समस्याओं से ग्रसित हो जाते हैं जो उनके बुढ़ापे को पीड़ायुक्त बना देते हैं।
आज समाज में इन वुजुर्गो की उचित देखभाल, उचित मान सम्मान और परिवार में उनको उचित स्थान देने की नितान्त आवश्यकता है। अन्यथा परिवार बिना बुजुर्गों के किंशुक इव पुष्प हो जाएंगे। बुजुर्ग परिवार की खुशबू हैं, जिनकी महक से परिवार के बच्चे (पोती, पोते, नाती नातिन)भी खिलते हैं। ये वे वटवृक्ष होते हैं जिनकी मधुरिम छाँव में परिवार पल्लवित पुष्पित होते हैं।

– नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।

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