आत्मविश्वास __ स्वर्णलता सोन

मां की मृत्यु के उपरांत,रागिनी ने ही घर को सम्भाल लिया था। अभी उम्र ही क्या थी उसकी! बारहवीं कक्षा में पढ़ रही थी,दो छोटे भाई बहन थे,पिता जी सुबह ही काम पर चले जाते थे।लेकिन उसने धैर्य का दामन नहीं छोड़ा। जल्द उठ कर घर का काम निपटा कर छोटे भाई बहन का टिफिन बांध कर स्कूल भेज देती फिर उनके ही साथ खुद भी स्कूल चली जाती। पिता जी भी बहुत ज्यादा नहीं कमाते थे।उसने हिम्मत नहीं हारी। कुछ छोटे बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी ले ली,साथ ही अपने भाई बहन को भी पढ़ाती थी।।ये जीवन उसके लिए चुनौती बन गया था।लेकिन उसकी जिजीविषा कम नहीं हुई। उसका आत्मविश्वास ही उसका बल था। कुछ पड़ोसी इस बात से जलते थे।कुछ ताने भी मारते थे, कि पढ़ कर क्या कलेक्टर बनेगी।पर उसने निर्भीकता से सब का सामना किया।
स्कूल में सभी उसकी बुद्धिमत्ता की सराहना किया करते थे।आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और वो कक्षा में प्रथम आई। उसकी मेहनत से दोनों भाई बहन भी अच्छे नंबर ले कर पास हो गए। उसके होठों पर मुस्कान थी। उसके पिता जी भी बहुत खुश थे।उनके पड़ोसियों को जब पता चला तो वो भी होठों पर कृत्रिम मुस्कान ले कर बधाई देने आ गए।
सच में मन में लगन हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता।।
स्वर्ण लता सोन