अपंग दिव्यांग और साअंग: एक चिंतन क्रमांक 6– सीमा शुक्ला

पूरी दुनिया में पाए जाने वाले दृष्टिहिन दृष्टिबाधित तथा अल्पदृष्टि से युक्त जीवों के हावभाव रहन-सहन आचार-विचार में सामान्य या सा अंग लोगों से विभिन्नता तो होती ही है, साथ ही साथ इन तीनों अवस्थाओं से युक्त लोगों के हाव भाव रहन-सहन आचार-विचार में भी विभिन्नता हमेशा परिलक्षित होती है. दृष्टिहीन जीव दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि जीव से ज्यादा मानसिक सूकून में होता है. दृष्टिहीनता के कारण उसे ना तो किसी रंग ना आकार और ना ही किसी रूप का स्पष्ट ज्ञान होता है. वह सभी रंगों की आकार की मात्र कल्पना करता है तथा कुछ चीजों के आकार रंग रूप को अपनी ज्ञानेंद्रियों द्वारा महसूस करता है. उसके लिए काला या अंधकार का रंग ही एकमात्र रंग हैं. इसलिए उसके मन में एक अथाह शांति होती है.
वहीं दूसरी ओर दृष्टिबाधित मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान रहते हैं. ये जीव रंगों को आकारों को तथा रूप को देख तो सकते हैं परन्तु इनके नेत्र-ज्योति की बांधा के कारण सभी वस्तुएं अस्पष्ट तथा दुविधा से भरी होती है. ये असमंजस के उस शिखर पर होतें हैं जहां या तो इनका आत्मविश्वास इन्हें दिव्यांग बनाता है या ये हत्तोसाहित हो हमेशा के लिए नकारात्मकता को ओढ़ लेते है. ये चूंकि अस्पष्ट ही सही पर सबकुछ देख पाते हैं तो इनकी इच्छाएं इनकी आकांक्षाऐ भी दृष्टि हीन जीवों से पृथक होती हैं जिन्हें समझने की नितांत आवश्यकता होती हैं.
ये सा अंगों की भांति स्वयं अपने हर कार्य को करने के लिए अग्रसर होते हैं परन्तु यदि इनकी दृष्टिबाधित के कारण ये किसी कार्य को पूर्ण नहीं कर पाते या इनसे कोई ग़लती हो जाए तो इन्हें सम्हालने तथा सहयोग देने का प्रयास प्रबुद्ध समाज को करना चाहिए. जिससे इनका मस्तिष्क सकारात्मक व्यवहार की तरफ अग्रसर हो.
इसी प्रकार वो जीव जो अल्पदृष्टि धारण करते हैं वे मानसिक तौर पर दृष्टि हीन तथा दृष्टि बाधितों से पूर्ण रूपेण पृथक होते हैं. इन्हें कम दिखाई देता है पर ये रंगों को पहचानने में सक्षम होते हैं. अल्पदृष्टि वाले जीव भी या तो अतिउत्साह में या हत्तोसाह के भाव में पाए जाते हैं.इनमे सा अंगों की भांति उड़ने की लालसा होती है परन्तु यदि ये अपनी लालसा को पूरा करने में असफल होते हैं तो ये अपंगता को अपना जीवन बना लेते हैं. अतिउत्साह या मनोबल होने पर ये दिव्यांगता की ओर गतिशील हो कई बार
स्वंय को भी चोटिल कर बैठते हैं.
अत: दृष्टिहीन, दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि जीवो को दिव्यांग बनाने के लिए प्रबुद्ध समाज को पहले तीनों स्थितियों में विभेद तथा उनकी मानसिक स्थिति का ज्ञान अति आवश्यक है. जब हम इन जीवों के वर्गीकरण को समझ पाएंगे तभी उनके अनुरूप कार्य कर पाएंगे.
सीमा शुक्ला चांद