अपंग दिव्यांग और साअंग : एक चिंतन क्रमांक ४ // सीमा शुक्ला

‘दिव्यांग ‘, बना अपंग किसी भी समाज के विकास में सकारात्मक ऊर्जा के साथ सहयोग प्रदान करता है. अब चिन्तन का विषय यह है कि अपंग को दिव्यांग कैसे बनाया जाए. इसका उत्तर बहुत सरल हैं, जिस क्षण हम हमारे समाज की शब्दावली से अपंग शब्द का प्रयोग तथा उपयोग पूर्ण रूप से समाप्त कर देंगे. उसी क्षण यह समाज सा अंगों और दिव्यांगो से भर जाएगा.
हमें पहले स्वंय फिर समाज को समझाने की आवश्यकता है की अपंगता का कोई अर्थ ही नहीं है हममें कमीयां बस तभी तक है जब तक हम उसे अपनी ताकत में परिवर्तित नहीं कर लेते. शारीरिक रूप से किसी अंग का कम होना ही नहीं अपितु सारे अंगों के साथ उत्पन्न होने के बावजूद उनका उपयोग ना करने वाला हर जीव भी अपंग की श्रेणी में आता है. साधारणत: शारीरिक और मानसिक कमियों के कारण भारतीय समाज में
सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग द्वारा दिव्यांगजन अधिनियम में पूर्व में प्रचलित 7 प्रकार की दिव्यांगताओं के स्थान पर २०१६ में जागरूकता के लिए 21 प्रकार की दिव्यांगताएं शामिल की गई है। इसके अंतर्गत दिव्यांगता के 21 प्रकार एवं उनके लक्षण निम्नलिखित हैं जैसे
दृष्टि बाधित तथा अल्पदृष्टि
दृष्टिहीनता
चलन दिव्यांगता
बौनापन
मांसपेशी दुर्विकास
तेजाब हमला पीड़ित
श्रवण बाधित
कम, ऊंचा सुनना
बोलने एवं भाषा की दिव्यांगता
कुष्ठ रोग से मुक्त
प्रमस्तिष्क घात
बहु दिव्यांगता
बौद्धिक दिव्यांगता
सीखने की दिव्यांगता
स्वलीनता
मानसिक रूगणता
बहु-स्केलेरोसिस
पार्किसंस
हेमोफीलिया
थेलेसीमिया
सिक्कल कोशिका रोग इत्यादि शामिल है।
उपरोक्त सभी अपंगता किसी जीव में शारीरिक या मानसिक कमियों को ही दिखा रही है. कुछ अपंगता ऐसी भी हैं जो शारीरिक या मानसिक कमियों के रूप में परिलक्षित नहीं होती जैसी वे जीव जो जन्म से सभी अंगों के साथ धरा पर आए हैं परन्तु वे उन अंगों का कोई उपयोग ही नहीं करते तो एसे सभी सा अंगों को भी अपंगों की श्रेणी में रखना अत्याधिक आवश्यक है. इस तरह के अपंग समाज के विकास में बहुत नकारात्मक प्रभाव डालती है. हमें ना केवल शारीरिक कमियों वाले अपितु साअंग जो अपंग की तरह व्यवहार करते हैं उन्हें भी दिव्यांग बनाने के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए. जिससे हमारा समाज सकारात्मक तौर पर विकसित हो सके.
सीमा शुक्ला चांद