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अपंग दिव्यांग और साअंग: एक चिंतन क्रमांक ७ — सीमा शुक्ला

दृष्टिहीनता समाज के लिए अभिशाप मान ली गई, क्योंकि दृष्टिहीन जीव को समाज ने केवल उसकी कमियां बताई गईं उसको दिव्यांग हो सकने की राह नहीं दिखाई गई परन्तु जिस दिन से इस समाज ने इन्हें इनकी योग्यताएं दिखाई इन दृष्टिहीन जीवों ने स्वयं को दिव्यांग बनाने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ी.
माना एक जीव जो दृष्टि हीन है वह कुछ भी देख नहीं सकता परंतु उसकी अन्य ज्ञानेंद्रियां अत्याधिक सक्रिय होती हैं.
दृष्टिहीनता का एक सबसे बड़ा फायदा यह है की ऐसे जीव को एकाग्रता को कोई भी चीज बाधित नहीं कर सकती. ये जीव जो भी कार्य करते हैं उसमें अपनी सम्पूर्ण उर्जा का उपयोग करते हैं. जिससे इनके द्वारा किए गए कोई भी कार्य अद्वितीय होते हैं. यदि समाज इनके द्वारा किए गए ऐसे कृत्यों के लिए इन्हें प्रोत्साहित करती है तो ये समाज के विकास में अभूतपूर्व योगदान देते हैं.
दूसरी ओर अल्पदृष्टि या दृष्टिबाधितो को अत्याधिक असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ता है इसलिए ऐसे जीवों का एकाग्र हो पाना अत्याधिक कठिन होता हैं. ये जीव पहले तो जो इन्हें दिख रहा है उस पर पूर्ण विश्वास नहीं कर पाते और अपने मस्तिष्क तथा ज्ञानेंद्रियों के बीच द्वन्द में फसे रहते हैं. परन्तु यदि इनकी अनुमान लगाने की क्षमता को ये जीव प्रवीण कर लेते हैं तब इनकी दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि इनकी दिव्यांगता का परिचायक हो जाती है.
फिर ये जीव ना देख पाने वाली चीजों का भी इतना स्टिक अनुमान लगाते हैं की इनकी दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि पर प्रबुद्ध जन प्रश्न करने लगते हैं. यदि इन जीवों में आत्मविश्वास अनुभव और अनुमान का तालमेल हो गया तो समाज का कोई भी जीव इन्हें अपंगों की श्रेणी में रखने की बात सोच भी नहीं सकता. परन्तु यह स्थिति इन जीवों के लिए बहुत सारे अवरोध लेकर आती है. ये जीव अक्सर सा अंगों की दृष्टि में अपनी दिव्यांगता के कारण संदेह का विषय बन जाते हैं. जिससे बार बार मानसिक रूप से प्रताड़ित होते‌ है. कई बार उनके मन की पीड़ा इतनी बढ़ जाती है की वे मजबूरी में दृष्टिबाधिता को छोड़कर दृष्टिहीनता को ओढ़ लेते हैं.
सीमा शुक्ला चांद

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