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बूढ़ी — लघु कथा // श्रीनिवास एन

एक देहात के पास तालाब है।उसे देखने के देश विदेश से आते जाते हैं। इसे तट पर रंग बिरंगे फूल से भरे होते हैं, यहां कुदरत रमणीय है। खग जंतु भी ध्वनि करते हैं,हर रोज शाम के समय यहां के लोग कुदरत को देखकर मुग्ध होते हैं। सहसा तेजी से हवा बह रहा है। नभ में रंग बदलते हैं,पेड़ पौधे झूमते है। एकदम वातावरण बदल जाता है,लोक भय से भाग जाकर अपने घर को वापस चल जाते हैं। मैं सुबह उठकर तालाब की ओर देखा तो वहां लोक भीड़ से देख रहे हैं।इस भीड़ से मुझ को एक बूढ़ी दिखाई पड़ा । मैं अचरज के साथ कहा कि बिना डर से बूढ़ी तलाब के तट पर नाच के साथ तेजी हवा से सांस लेकर नाच करती है। सब लोग बूढ़ी की ओर देखते देखते कहा कि आप उतरो उतरो …
अरे बाबा! मुझे को आंखों की ज्योति मंद पड़ती है। हम सब आप को कैसे बचाना बूढ़ी? मैं एक क्षण भर सोचकर…….!
श्रीनिवास एन