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देश द्रोही की बेटी [3 ] — उपन्याकार पुष्पा भाटी की कलम से

उसने मित्रवत अन्दाज में अपने दोस्तों को धन्यवाद किया और आगे की ओर चल पड़ा।

जब वह अपनी कार पर रवाना हुआ तो उसके अन्य साथियों की आंखों में गहन चिंता के भाव थे।
ब्रिगेडियर अभिषेक की कोठी दिल्ली में थी जहां वह शान शौकत के साथ-साथ कप्तान के पद पर कार्य करने के कारण पूरी तरह देश भर में परिचित हो चुका था।
जब वह कोठी के शानदार ड्राइंग रूम में पहुंचा तो उसने ब्रिगेडियर अभिषेक को एड़ियां बजाकर शानदार सैल्यूट पेश किया। बैठो। हितेष। ब्रिगेडियर ने सैल्यूट का जवाब देने के बाद बैठने का इशारा करते हुए कहा- वैसे मैंने तुम्हें व्यक्तिगत कारणों से यहाँ बुलाया है। आप आदेश कोजिए “सर उसने उत्सुक भरे स्वरो में कहाँ!
चेहरे पर छाई तस्वीर उससे छिपी न रह सकी।

इन्हें जानते हो। हितेष। ब्रिगेडियर ने हिना की ओर ईशारा करते हुए वाक्य पूछा।

बखूबी जानता हूं। सर। यह मेरी बेटी है ,कुछ महीने पूर्व हिना का किडनैप कर लिया गया था। अपने अपहरण की रिपोर्ट सुनाने के इसने स्वयं की गाथा को खुद गाकर मुझे सुनाया था। व फिर हिना के चेहरे के भावों को गम्भीरतापूर्ण देखा।

(हिना बिना किसी हिचकिचाहट के खामोश होकर बार-बार हितेष को घूरती हुई नजर प्रतीत हो रही थी।)

हिना का कहना है कि तूने इसका इतना बड़ा हादसा सुनने के बाद इसकी कोई मदद नहीं की, क्या ये सब सच है मिस्टर हितेष ? कप्तान अभिषेक ने अपनी आदत के मुताबिक बिना हेरफेर के पूछा।
मि. हितेष इस आरोप के विषय मे तुम्हारा जवाब जानना चाहता हू।
हितेष का। जवाब ….. continues

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