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देश द्रोही की बेटी 7 — उपन्याकार पुष्पा भाटी

 

मैंने इसकी कोई एप्रोच नहीं की।

क्या सच नहीं कि तुम एक भारत माता की कोख से उत्पन्न बलशाली हिन्दुस्तानी हो। यह एकदम सच है। लेकिन हिना के बारे में चर्चा करके अंग्रेजों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता। क्योंकि मैंने अंग्रेजों का नमक खाया है। इस कारण मैं हिना की कोई भी एप्रोच नहीं कर सकता। मि. अभिषेक ने बात को टोकते हुए लहजे स्वर में पूछा। लेकिन तुम्हें पिता की रस्में तो निभानी चाहिए थी। इस सवाल का उत्तर पेचीदा है सर। इन सब बातों को हिना मुझसे पहले भी कर चुकी है। यदि मैंने अंग्रेजों का नमक न खाया होता तो मैं स्वयं उनकी जिन्दगी व मौत का फैसला करने को तैयार होता। उसने अहंकार भरे शब्दों में फूंक भरा।

हिना नहीं चाहती कि तुम अंग्रेजों के साथ रहो। क्या हिना भी ऐसा चाहती है सर।

वह नादान है। लेकिन करोड़पति तो उसे ही बनना है। वह बालिग है। सर। देश की मान-मर्यादा सोचने की पर्याप्त तामीज उसमें मौजूद नहीं है, फिर शान के हिसाब से वह गलत नहीं है सर। यानि तुम अपनी बेटी के ख्यालों को ठुकराने की मर्यादा रखते हो।

मैं जानता हूं कि मेरे जवाब से आपको खुशी नहीं होने वाली। लेकिन सच यह है कि मैं हिना के प्रस्ताव को रद्द कर चुका हूं। लेकिन वह प्रस्ताव अभी रद्द किया जा चुका है।

मर्दानगी वाली बात नहीं हुई मिस्टर हितेष। हर बार हिना और तुम्हारी विचारशैली के विषय में हिना की बात का आधार सर्वश्रेष्ठ ही रहा है।

सर। ‘मेरा ख्या है मेरा और हिना का बाप-बेटी का मामला है। और आप बेवजह इसमें दखल दे रहे हो।

मैं एक हिन्दुस्तानी कप्तान होने के नाते तुम्हें समझा रहा हूं।

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