हार की जीत (लघुकथा) // लक्ष्मी चौहान

कहते है कि हार कर जीतने वाले को ही बाजीगर कहते है। फिर तो नलिनी भी बाजीगर ही थी। जतिन और नलिनी दोनों सहपाठी थे। दोनों ही होशियार छात्र थे और हमेशा ही अपनी कक्षा में अव्वल आते थे। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे लेकिन उन्होंने अभी तक यह बात एक दूसरे को बताई नहीं थी। एक वर्ष बीत गया था और उनकी पढ़ाई खत्म हो गई थी। अब वे दोनों प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने लगे। उनका मिलना-जुलना कम हो गया था। अब बातें फोन पर ही होती थी, वो भी पढ़ाई के सिलसिले में। परीक्षा का परिणाम निकल गया, दोनों अपने-अपने सपने पूरे करने अपनी मंजिल की ओर बढ़ गए। समय गुजरता गया। एक दिन जतिन ने नलिनी को फोन पर बताया कि वो उससे मिलना चाहता है। छुट्टी पर दोनों ही अपने घर आ गये । जतिन नलिनी को लेकर एक सुन्दर से कॉफीशॉप पर गया। जहाँ वो आज नलिनी से अपने प्यार का इजहार करने वाला था। कॉफी पीते पीते उसने नलिनी को अपने मन की बात बता दी।
इससे पहले कि नलिनी कुछ बोल पाती जतिन की माँ का फोन आ गया । जतिन वापस घर आ गया। उन्होंने जतिन से कहा कि मैंने तुम्हारे लिए लड़की पसन्द कर ली गई है। यह सुनकर वह थोड़ा परेशान हो गया। उसने हिम्मत की और माँ को नलिनी के बारे में सब कुछ बता दिया। जतिन की माँ एक समझदार महिला थी। उन्होंने सोच समझकर फैसला लिया और नलिनी को अपनी बहू बनाने के लिए हामी भर दी। इससे पहले कि उनकी शादी होती एक दिन अचानक से नलिनी की तबियत खराब हो गई। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। परीक्षण में पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है। लगा उसकी दुनिया ही खतम हो गई । सारे सपने एक साथ चकनाचूर हो गए। उसने यह बात जतिन को नही बताई और बहाना बना कर शादी करने से इनकार कर दिया। जतिन की समझ में कुछ नही आ रहा था कि नलिनी ने शादी के लिए मना क्यूँ किया। कुछ समय बाद जतिन की शादी हो गई। हँसी खुशी जिन्दगी व्यतीत हो रही थी। शादी को दो वर्ष हो गए। तब जतिन को पता चला कि नलिनी को ब्लड कैंसर है। जिस कारण उसने शादी से इनकार किया था। वो फौरन नलिनी से मिलने उसके घर गया। नलिनी अब काफी कमजोर लग रही थी। दोनों की आँखों में आँसू आ गए। वे दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे। सारे गिले- शिकवे खामोशी से ही दूर हो गए। आज नलिनी #हार कर भी जीत गई थी।
——श्रीमती लक्ष्मी चौहान
कोटद्वार, उत्तराखंड