जीवन में स्वयं को माफ करना आना चाहिए // राजेन्द्र परिहार

मनुष्य जीवन जितना सहज महसूस होता है, उतना ही दुष्कर भी है। मनुष्य को केवल आंखों देखी या कानों सुनी बात पर यकीन न करके तटस्थ भाव से जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
दूसरों की बुराई,कमियां सरलता से दिखाई दे जाती है, किंतु स्वयं की गलतियों या कमियों पर सहजता से नज़र नहीं जा पाती है। अत: मनुष्य वही श्रेष्ठ है जो समय समय पर स्वयं का सही मुल्यांकन करता रहता है।
अपने द्वारा की गई गलतियों को महसूस करके अन्तर्मन से पश्चाताप करके पुनः वह गलती नहीं करने का प्रयास करता है।
यदि आपके
व्यक्तित्व में कमी को कोई अन्य महसूस कर बताता है तो उसे स्वीकार करने की क्षमता विकसित करना भी अत्यावश्यक है।
व्यक्तित्व भी धीरे-धीरे ही परिष्कृत होता है।
निरंतर प्रयास व अभ्यास से ही व्यक्तित्व में निखार आता है।
मनुष्य सबसे श्रेष्ठ प्राणी कहलाता है सृष्टि जगत में। अत: श्रेष्ठ सोच, समझ, व्यवहार ही उसे श्रेष्ठतम बनाते हैं।
मेरे कारण किसी को दुःख हानि या असुविधा न हो यही मानव की सर्वश्रेष्ठ प्रवृत्ति अथवा विशेषता मानी जाती है।
सहजता और विनम्रता मनुष्य का सबसे श्रेष्ठ गुण है जो उसे भीड़ से अलग पहचान दिलाते हैं।
राजेन्द्र परिहार “सैनिक”