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लघु कथा -छो टी छोटी खुशियाँ बदल देती हैं दुनियां- राजेश कुमार राज

 

 

राधेश्याम वर्मा एक ६६ वर्षीय सेवानिवित्त सरकारी राजपत्रित अधिकारी हैं। आज राधेश्याम वर्मा अपनी सामान्य चिकित्सीय जाँच के लिए एक नजदीकी अस्पताल में गए। उनकी धर्मपत्नी सुरेखा वर्मा भी उनके साथ थीं। उन्हें अपने पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड कराना था। जब वो अस्पताल गए थे तो खुद को थका-थका सा महसूस कर रहे थे जैसे कि अमूमन एक मरीज के मनोभाव और शारीरिक प्रतिक्रिया होती है वैसे ही। उन्होंने अपना बिल काउंटर पर थमाया और काउंटर पर बैठी महिला स्टाफ से अल्ट्रासाउंड के लिए नंबर लगाने की विनती की। महिला स्टाफ ने उनका बिल जमा कर लिया और उन्हें जानकारी दी कि अल्ट्रासाउंड का नंबर आने में लगभग दो घंटे की प्रतीक्षा चल रही है. उसने राधेश्याम वर्मा को बैठ कर इंतजार करने का निर्देश दिया।

कुछ देर पश्चात उसी काउंटर स्टाफ ने राधेश्याम वर्मा का नाम पुकारा. राधेश्याम वर्मा काउंटर पर गए तो उस महिला स्टाफ ने उन्हें पानी पीकर पेशाब का प्रेशर बनाने के लिए कहा। राधेश्याम वर्मा ने नजदीक रखे वाटर डिस्पेंसर से चार गिलास पानी पिया और कुर्सी पर बैठ कर अपना नंबर आने की प्रतीक्षा करने लगे। इस बीच वो थोड़े-थोड़े अंतराल के पश्चात पानी पीते रहे। अब राधेश्याम वर्मा पानी पी-पी कर और प्रतीक्षा कर-कर के ऊब चुके थे। इस उबन से बचने के लिए राधेश्याम वर्मा खुली हवा में एक चक्कर लगाने के लिए अस्पताल से बाहर निकल गए। उन्होंने अस्पताल के गार्डन में बैठ कर लगभग आधे-पौन घंटे तक सोशल मीडिया देखा। अब उन्हें महसूस हुआ कि शायद उनका नंबर आने ही वाला होगा। वें वापस आये और पत्नी सुरेखा वर्मा से पूछा कि क्या उनका नंबर आ गया है। पत्नी ने बताया कि उनके कागजात अल्ट्रासाउंड रूम नंबर-२ में भेज दिये गये हैं। थोड़ी ही देर में एक महिला स्टाफ अल्ट्रासाउंड रूम नंबर-२ से बाहर आई और उसने राधेश्याम वर्मा का नाम पुकारा। राधेश्याम वर्मा अल्ट्रासाउंड रूम में जाने के लिए बिजली की गति से उठे मानो उन्हें कोई खजाना लेने जाना हो।

राधेश्याम वर्मा अल्ट्रासाउंड रूम नंबर-२ के अन्दर गए जहाँ एक अल्ट्रासोनोलोजिस्ट (अल्ट्रासाउंड करने वाला डॉक्टर) उनका इन्तजार कर रहा था। महिला स्टाफ ने उन्हें एक नियत स्थान पर चप्पल उतार कर एक लम्बी सी बर्थ पर सीधा लेट जाने के लिए बोला। राधेश्याम वर्मा उसके कहे अनुसार लेट गए। डॉक्टर ने उनका अल्ट्रासाउंड किया और उन्हें अगले दिन काउंटर से रिपोर्ट लेने का निर्देश देकर कर घर जाने को कहा।

राधेश्याम वर्मा अल्ट्रासाउंड रूम नंबर-२ से बहार आये। उनके चेहरे पर एक विजेता जैसी मुस्कान थी। उनकी चाल में ठहराव और आत्मविश्वास झलक रहा था। कुल मिलाकर उनका व्यवहार एक युवक के समान प्रतीत हो रहा था। राधेश्याम वर्मा तेज परन्तु संतुलित क़दमों से अपनी धर्मपत्नी सुरेखा वर्मा के पास आये। उन्हें इतना प्रफुल्लित देख कर सुरेखा वर्मा ने उनकी प्रसन्नता का कारण पूछा।

“क्या बात है जी बहुत खुश दिख रहे हो. अल्ट्रासाउंड करने वाली डॉक्टर कोई जवान और सुन्दर लड़की थी क्या?” सुरेखा वर्मा ने पूछा।

“नहीं जी, ऐसा कुछ भी नहीं था. अल्ट्रासाउंड एक मर्द डॉक्टर ने ही किया है.” राधेश्याम वर्मा ने उत्तर दिया।

“फिर क्या बात है जो इतने खिल रहे हो।” सुरेखा वर्मा ने जोर देकर दोबारा पूछा।

“डॉक्टर ने मेरी सभी बीमारियों की तफसील से जानकारी ली। फिर उसने मेरी उम्र पूछी। मैंने अपनी असली उम्र बता दी कि मैं ६६ वर्ष का हूँ।” राधेश्याम वर्मा ने सुरेखा वर्मा को बताया।

राधेश्याम वर्मा ने जो उत्तर दिया उसे सुन कर उनकी धर्मपत्नी सुरेखा वर्मा खिलखिला कर हंस पड़ी।

“तो इसमें इतना खुश होने की क्या बात है?” धर्मपत्नी ने थोड़ी बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोला।

“अरे इस उम्र में यह मेरे लिए एक अति उत्साहवर्धक और महत्वपूर्ण टिप्पणी है। मैं आज भी अपनी वास्तविक उम्र से १६ वर्ष छोटा दिखाई पड़ता हूँ। यह मेरे लिए सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है जो मुझे लम्बे समय तक तरोताजा बनाये रखने में सहायक होगी।” राधेश्याम वर्मा ने अपनी पत्नी को मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“चलिए चलिए ज्यादा जवान मत बनिए, मैं अभी भी आप से बहुत छोटी और जवान हूँ।” यह कह कर सुरेखा वर्मा अपने पति राधेश्याम वर्मा का हाथ पकड़ कर उन्हें अस्पताल के गेट से बाहर ले आईं। दोंनों पति-पत्नी अपनी स्कूटी से घर के लिए निकल पड़े। सुरेखा वर्मा अपने पति की भावभंगिमा देख कर उनके आत्मविश्वास को महसूस कर पा रही थीं।

उधर राधेश्याम वर्मा मन ही मन खुद से कह रहे थे, “हमारे बुजुर्ग ठीक ही कहा करते थे कि मनुष्य को प्रसन्न रहने के लिए हमेशा बहुत अधिक धन-दौलत, घोड़ा-गाड़ी, बड़े-बड़े बंगले-महल, महंगे-महंगे आभूषण, महंगे और ट्रेंडी कपड़ों की ही आवश्यकता नहीं होती। कभी-कभी किसी की एक उत्साहवर्धक और कर्णप्रिय टिप्पणी भी इंसान को कुछ समय के लिए प्रसन्नता के सातवें आसमान पर बैठा देती है।”
राजेश कुमार “राज’

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