लघुकथा — ,दूर के ढोल सुहावने — सपना बबेले

दोस्तों ये कहानी दो पड़ोसियों की है। मीरा के घर पर किसी न किसी बात पर बहुत झगड़ा होता था। पूरा घर तेज तेज आवाज में खूब लड़ाई करने के आदी थे । और दो-चार दिन में भूल जाते और फिर बात करने लगते थे। पूरा मोहल्ला तमाशा देखता था। और त्यौहार भी अच्छी तरह मनाते। सीमा मीरा के पड़ोस में रहने वाली बहू है। उसके पति दो भाई थे सीमा के पति सीमा के पास थे और सीमा के जेठ किसी दूसरे शहर में रहते थे। साल में एक बार आना और खुशी-खुशी समय बिताना। सीमा को बड़ा नाज था कि देखो हमारे घर कभी लड़ाई नहीं होती। एक दिन सीमा मीरा से ताना मारते हुए कहने लगी मीरा तुम्हारे घर में कितनी लड़ाई होती है। पूरे मोहल्ले में हल्ला है तुम्हारे घर की लड़ाई का।
मीरा बोली देखो बहन जहां चार बर्तन होते हैं आवाज तो होती ही है। अब तुम्हारा क्या तुम तो अकेली रह रही हो तो किससे लड़ होगी। तुम्हारे जेड तो बाहर रहते हैं। सीमा बोली नहीं ऐसा नहीं है हमारे घर कभी लड़ाई नहीं हो सकती।
मीरा बोली अरे सीमा दूर के ढोल सुहावने हैं। जेठ यहां आकर रहने लगेंगे तब पता चलेगा की लड़ाई होती कि नहीं।
सीमा की जेठ किसी शहर में फैक्ट्री में काम करते थे जेठानी और बच्चे भी साथ में रहते थे। कोरोना काल में फैक्ट्री बंद होे ने के कारण सामान सहित घर आना पड़ा।
घर आकर दो चार दिनों के बाद मकान के बंटवारे की बातें होने लगी आपस में झगड़ने लगे।
तब सीमा ने मीरा से कहा ,आप की बात सही साबित हो गई
दूर के ढोल सुहावने। हमारी जेठानी और जेठ भी अब परायों जैसा व्यवहार करने लगें हैं।
#सपना_बबेले