लघुकथा: हार की जीत // पालजीभाई राठौड़

एक छोटा सा गांव में दो मित्र राकेश और रोहन रहते थे। दोनों का घर पास में ही था।दोनों साथ खेलें कूदें, पढें और बड़े हुए। समय का पहिया कभी रुकता नहीं है। हमें समय के साथ चलने की कोशिश करनी चाहिए। जीवन में आगे बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत लगन से करनी चाहिए।
दोनों मित्र दसवीं कक्षा में पहुंच गए राकेश महेनत करता था जबकि रोहन मैट्रिक की परीक्षा को गंभीरता से नहीं लेता था।जब परिणाम आया तो राकेश को अच्छे गुण मिला और रोहन फेल हो गया। रोहन के मातापिता ने भी उसको डांटा।राकेश निराश हो गया। उसकी गलती पर पछतावा होने लगा।
राकेशने अपने मित्र को पास बुलाया और समझाया; ‘रोहन,जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए। किसी भी कार्य में हार न मानने से जीत मिलती है। जीवन में कभी निराश मत होना। इस जमाने में लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है। गैरों के भरोंसे तो सिर्फ धोखा ही मिलता है। इसलिए भरोसा रखों तुम अपनी बाजुओं पर कामयाबी चूम लेगी निश्चित ही तुम्हारे कदम। बस दिल में तुझे हौसले बुलंद करके रखना।तेरा आत्मविश्वास ही सबसे पहले तेरे काम आएगा जिसके कारण तुझे जीत मिलेगी।
राकेश की समझदारी की बात रोहन के मन में बैठ गई।बडी लगन से अभ्यास में लग गया। दिन रात एक किया। रोहन अच्छे गुण से पास हो गया और उनके माता पिता ने तो हार मान ली थी मगर रोहन ने हार को जीत में बदल दिया।लगन से मेहनत की यह उसकी हर की जीत थी।
“जितना कठिन दौर से गुजरते हैं उतना ही हम मजबूत होते हैं,
संघर्ष करने की भावना बढ़ती है हम जीवन में उन्नति कर लेते है।
पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात