लघुकथा:- शब्दों की चोट — रमेश शर्मा

दिल्ली में बनियान बनाने की एक में पगार की लाइन में लगे एक युवक से खिड़की में से केशियर ने कहा यहां पर साइन करो। उसने कहा मैं अंगूठा लगाऊंगा स्टाम्प पेड दीजिए। वहीं कैशियर के पास बैठे मैनेजर ने उस युवक से पूछा, क्या आप पढ़ें लिखे नहीं हैं।वह बोला नहीं।यह सुनकर मैनेजर चकित रह गया और उसके मुंह से निकला अफसोस।
इस घटनाक्रम ने उस युवक को बैचेन कर दिया। बचपन में पिटाई के डर से पढ़ाई छोड़ उसे काफी समय हो गया था और वह सुबह होते ही अपने गांव चला गया। वहां अपने पिता जी से पढ़ने की इच्छा जताई। उनके पिताजी उन्हें अपने पास के गांव में एक मिडिल स्कूल के परिचत अध्यापक के पास ले गए। उन्हें सारी बात बताई। उन्होंने ने उस युवक को अपने पास रख लिया चूंकि इतने बड़े बच्चे को स्कूल में दाखिला संभव नहीं था। अतः घर पर सुबह शाम पढ़ाते और उसे होमवर्क देकर जाते। उसकी पढ़ाई के प्रति लगन देखकर वह भी चकित हो गये ।उस युवक ने चार साल में मिडिल पास कर ली।
आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ में एक इंटरकालेज में एडमिशन ले लिया और मेहनत करके चार साल में बारहवीं पास कर ली। फिर अपने एक परिचित के माध्यम से जयपुर में बिजली विभाग में अस्थाई रूप से क्लर्क की नौकरी की । साथ ही उन परिचित की प्रेरणा से रात्रि कालीन कक्षाएं महाराजा कालेज में जोइन की और ग्रेजुएशन किया।
अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर विभाग में प्रमोशन लेते हुए।सन1984 में वे वरिष्ठ लेखा अधिकारी के पद से रिटायर हुए।
रमेश शर्मा