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लघुकथा-वो पहला दिन — लता शर्मा

सीता अपने पिता की अकेली संतान थी ,घर से भी काफी सम्पन्न ,अति लाड़ दुलार में नकचड़ी,जिद्दी,मुंहफट भी।
सीता और सनत की नई नई शादी हुई थी, और सीता चाहती थी सनत दिन भर उसके आस पास रहे नखरे उठाए किन्तु सन्त प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रहता इसलिए सीता को समय नहीं दे पाता था ,आंधी आधी रात तक पढ़ाई करते रहता कभी घर में कभी दोस्त के घर। जिससे सीता का पारा चढ़ा रहता,एक दिन सनत जल्दी घर आ गया और बीबी कोबाहर खाने,घुमने का आफर दिया मगर सीता खुश होने के बजाय लड़ाई करने ,अनाप शनाप बोलने लगी सनत पर चरित्र हीन का लांछन लगाया कि दोस्त के बहाने वह फलां लड़की जिसे सनत बहन मानता था हर साल राखी बंधवाता उससे गलत संबंध की बात कह जोर जोर चिल्लाने लगी । सनत बहुत दुखी हुआ ,यही वो पहला दिन था जब सनत का मन सीता के लिए वितृष्णा से भर गया।
फिर आये दिन सीता का चीखना चिल्लाना घर वालों की ,सनत की आने वालों के सामने बेइज्जती करने से दुखी सनत ने तलाक की अर्जी दे दी ,जल्दी दोनों अलग हो गए,सनत एक्जाम में फेल हो गया,और मानसिक रोगी बन गया।शक और नासमझी जिद ने दोनों की जिंदगी तबाह कर दी लेकिन सीता का अहम,घमंड नहीं टुटा। सनत पागल सा शून्य में ताकतें बैठा रहता है।

लता शर्मा त्रिशा

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