लघुकथा।—-“वो-शाम” — नरेंद्र त्रिवेदी

नीलम वर्ले सीफेस के तट पर क्षितिज पर डूब रहे सूरजको देख रही थी। नीलम शाम को समुद्रीतट पर बैठकर सूर्यास्त का दृश्य देखना पसंद करता थी। आज भी, सूरज समुद्र के दूर के छोर में डूब रहा था। अक्सर नीलम और उदय शनिवार, रविवार शामको वर्ली सीफेस पर घूमने आया करते थे। आज नीलम अकेली सीफेस पर घूमने आए थी।क्षितिज पर डूबते सूरज को देखकर अचानक नीलम यादोके भवरमे खो गई …।
नीलम और उदय साथमें अध्ययन करते थे। दोनों के बीच प्यार के अंकुर फुट चूके थे। दोनोके बीच ट्यूनिंग भी अच्छी थी। बड़ों की सहमति से, शादीके बंधन में बंध गये। उदय को एक अच्छी नौकरी मिल गई इसलिए नीलम नौकरी के बजाय अपने शौक के कारण तस्वीरें खींचने में व्यस्त हो गई। उदय को अक्सर कार्यालय से बाहर जाना पड़ता था। उदय हरवख्त अपनी सचिव मीना के साथ ही कार्यालय के कामके लिए बाहर जाता था मगर नीलम को उदय पर पूरा भरोसा था। नीलम ये बातको हल्के से ले रही थी ओर कभी उदयको इस बारेमे पूछा नही था।
एक शाम, नीलम और उदय वर्ली सीफेस पर बैठे थे। सहसा नीलम के जीवन में भूकंप आया। उदय के मोबाइल में रिंग बजी, नीलम ने फोन उठाया, मीनाका ही फोन था। वो कहे रही थी “डार्लिंग हमारे गोवाकी टूर निर्धारित है, है ना? हम कल निकलते है होटल का बुकिंग हो गया है।”
नीलमने उदयके सामने देखा, उदयकी आँखे कहे रही थी की मीनाकी बात सही है। नीलमकी जिन्दगीका सूर्यास्त हो चूका था ओर उसका भरोसा समुद्री पानीकी लहेरोकी तरहा किनारे पे टकराकर चूर चूर हो गया था।
नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)