लिखारी __ हिमांशु वशिष्ठ

लिखना एक कमाल की कला, या यूं कहें कि एक कमाल का आशीर्वाद है। आज लगभग सात से आठ साल हो गए है मुझे लिखते हुए, कभी कविता, कभी शेर-ओ-शायरी, कभी गीत और कभी कभी बस यूं ही मन की बातें, पर आजतक मै समझ नहीं सका कि इस कला कि उपज किस तरह हुई। क्या इसका बीज जन्म के साथ कुछ चुनिंदा लोगों में परमात्मा द्वारा बोया जाता है? या फिर वक्त के साथ इंसान के अनुभवों से यह अपने आप अंकुरित होता है? या फिर किसी अन्य स्किल की तरह इंसान खुद ही इसकी शुरुआत कर सकता है? पर यहां एक बात भी स्पष्ट है कि किसी स्किल और कला में बहुत अंतर है, जो की अपने आप में एक बड़ा विषय है। खैर, कहीं भटके बिना वापिस मुद्दे पे आते है, ‘ लेखक ‘ या अपनी मां बोली में कहुं तो ‘ लिखारी ‘ एक कमाल का जीव है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पास परमात्मा द्वारा बक्शी गई एक खास संपत्ति होती है। एक ऐसी संपत्ति जिसे कोई आपसे छीन नहीं सकता। और जिसके होने से आपके अंदर एक ख़ास ऊर्जा, एक ख़ास काबिलियत, एक ख़ास शक्ति बनी रहती है। शक्ति, इस समस्त संसार को अपने आंख रूपी कैमरा द्वारा एक चित्र के रूप मे मस्तिष्क के मैमोरी कार्ड मे कैद कर किसी प्रिंटर की भांति कलम द्वारा छाप कर क्षणभर में दर्शन कराने की। सुनने में समस्त संसार जितना विशाल प्रतीत होता है, एक लिखारी उसे वास्तव में उतना ही सूक्ष्म भी दर्शा सकता है। वह चाहे तो इस संसार का सार मात्र दो पंक्तियों के छंद में लिख सकता है। वह चाहे तो एक छोटे से छोटे शब्द पे पोथियां भर सकता है। वह चाहे तो किसी भी आम इंसान को विशेष से विशेष सिंहासन पर बैठा सकता है, वह चाहे तो समस्त भू-मंडल के नरेश को साधारण से साधारण मनुष्य कि भांति दर्शा सकता है। लिखारी को रचनाकार यूं ही नहीं कहा जाता वह सचमुच ही रचयिता है, एक ऐसी दुनिया का जहां सही-गलत, छोटा-बड़ा, अच्छा-गन्दा हर बात का फैसला निर्भर है उसके शब्दों पर। वह चाहे तो पल भर में बड़े से बड़े ऐब में भी आपको गर्व महसूस करा दे। वह चाहे तो आपकी बड़ी से बड़ी समझदारी को भी कायरता सिद्ध कर दे। एक नयी दुनिया की रचना के साथ साथ वह जब चाहे तब असल दुनिया को भी रचना में उतार सकता है। वह चाहे तो इसी धरा पर आपको स्वर्ग के दर्शन करा दे, चाहे तो अगले ही क्षण यही नरक दिखा दे। और सबसे आम, वह अपनी भावनाओं को, अपनी सोच को, अपने मन की बातों को स्याही का रंग देकर न केवल दुनिया को दिखा सकता है बल्कि अपना मन भी हल्का कर सकता है। सचमुच यह एक कमाल की कला है। जैसा कि मेरा प्रश्न था कि इसकी उपज कैसे होती है, इसका जवाब तो पता नहीं पर हा यदि कोई लगातार लिखता रहे तो अवश्य ही धीरे-धीरे एक हीरे की भांति उसका लेखन निखरता जाता है। जैसा कि मैंने कहा लिखारी चाहे तो समस्त संसार को एक पृष्ठ के टुकड़े पर उतार सकता है तो अंत में इस पूरे गद्य का सार मात्र दो-चार पंक्तियों मे लिख देता हूं।
जै लिखण लाग जा बैठा बैठा लिखदे सार जगत का
कलम गैल दे दिखा दर्श जीन्दे जी सुरग नरक का
शब्दा का भी पक्का नू, जू पक्का होवै जुवारी शर्त का
अर नूए कोन्या कहवै लिखारी दुनिया किसे भी माणस तै
भीतर के मा होणा चाहिए सच्चा प्यार कलम का
मखा भीतर के मा होणा चाहिए सच्चा प्यार कलम का।
हिमांशु वशिष्ठ
रेवाड़ी हरियाणा