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मैं नारी हूं — राजेन्द्र परिहार

 

मैं नारी हूं इस सृष्टि का सृजनात्मक संजीवन कृति।
यद्यपि शक्तियों का पुञ्ज मेरे अन्तर में निहित रहा,
तथापि सदैव ही मैं हारी हूं। कभी पूज्य मानकर पूजा
गया, कभी जंजीरों में भी मुझे जकड़ा गया। क्रूरता
और बंदिशों के बंधन में जकड़ी रही सदियों तक फिर
भी मेरा अस्तित्व कायम रहा है।जब जब भी मैंने
स्वतंत्रता चाही , मुझ पर और भी ज्यादा अत्याचार
बढ़ा दिए। यहां तक कि महान संत, महाकवि, विद्वान
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में
मेरा चरित्र धूमिल करते हुए लिखा “ढोल गंवार शुद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी।।

इस दोहे ने मेरे चरित्र को कलंकित ही किया और
अर्थ चाहे जो भी हो अनर्थ को ही समाज ने पूर्णतः
अंगीकार किया और मुझ पर क्रूर अत्याचार और
अमानवीय व्यवहार होता रहा। मेरी सहनशीलता
ही मेरे पतन का मूल कारण बनी। पग पग पर मुझे
छला गया। उपभोग की वस्तु मानकर मेरा शारीरिक
और मानसिक शोषण सदियों तक जारी रहा। जब
जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो स्याह अंधकार के
सिवा कुछ भी नजर नहीं आता। शिक्षा से सदैव वंचित
रखा गया परिणामस्वरूप एक पशु से भी बदतर हो
कर रह गई मैं। यद्यपि समय परिवर्तित हुआ है और
मुझे शिक्षा रूपी संजीवनी प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और मैं उन जंजीरों से कुछ हद तक मुक्त भी हुई हूं अपने बलबूते अपना भविष्य बना रही
हूं तथापि अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। रात्रि का
अंतिम पहर चल रहा है अभी मेरे जीवन की भोर होना
शेष है। धरती के कितने ही कोने अभी भी घने अंधेरे
में डूबे हुए हैं अस्तित्व की जंग जारी है और पूर्ण
विश्वास है कि मैं यह जंग जीतकर ही दम लूंगी।

राजेन्द्र परिहार “सैनिक”

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