Uncategorized

मासूम प्रेम // अनीता चतुर्वेदी

 

सुबह की हल्की ठंडी हवा कॉलेज के गलियारों में बह रही थी। शालू अपने लंबे, घने बालों को एक ओर करते हुए क्लास की ओर बढ़ रही थी। उसका रंग दूध-सा उजला था, उसकी आँखों में गहराई थी, और स्वभाव बेहद शर्मीला। कॉलेज की कई लड़कियाँ उससे अपनी परेशानियाँ साझा करती थीं, और कई लड़के उसे मन ही मन चाहते थे, लेकिन उसकी शालीनता के आगे कोई अपने मन की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।

आज भी वह अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी कि अचानक एक गंभीर आवाज़ ने उसे चौंका दिया—

“मुझे रूम नंबर 20 बताना ज़रा।”

शालू ने नज़रें उठाईं। सामने एक लंबा, आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला युवक खड़ा था। उसकी आँखों में आत्मविश्वास था, और उसके होठों पर हल्की-सी मुस्कान।

“रूम नंबर 20 ऊपर है,” शालू ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया।

“कितना ऊपर? पहला मंज़िल या दूसरा?”

“आप मेरे साथ आइए, मैं भी वहीं जा रही हूँ।”

शालू उसे लेकर क्लास में पहुँची और जाकर अपने सहपाठियों के साथ बैठ गई। लेकिन तभी उस युवक ने आगे बढ़कर टीचर की टेबल के पास खड़े होकर कहा—

“गुड मॉर्निंग, स्टूडेंट्स! मैं मोहित, आपका नया प्रोफेसर।”

पूरा क्लास खड़ा हो गया। शालू हैरानी और शर्म से भर गई। उसने उसे एक छात्र समझ लिया था! मोहित का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था, और उसकी बातें इतनी सहज थीं कि कब शालू का मन उसकी ओर खिंचता चला गया, उसे खुद पता नहीं चला।

दिन बीतते गए। शालू ने मोहित को दिल से चाहना शुरू कर दिया था। वार्षिक समारोह के बाद, जब मोहित अपनी कार से घर जा रहा था, तो उसने देखा कि शालू अकेली सड़क पर चल रही थी। उसने कार रोककर कहा,

“क्या मैं तुम्हें घर तक छोड़ सकता हूँ?”

शालू ने हिचकिचाते हुए उसकी ओर देखा, फिर धीरे से कार में बैठ गई। रास्ते में हल्की-फुल्की बातें हुईं, लेकिन शालू के लिए यह सफर उसकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत सफर था। उस रात वह कितनी देर तक चाँदनी में बैठकर अपने सपनों को पंख देती रही।

धीरे-धीरे समय बीतने लगा। मोहित उसके लिए सिर्फ़ एक प्रोफेसर नहीं, बल्कि उसका आदर्श, उसका सपना बन चुका था। लेकिन एक दिन मोहित कॉलेज नहीं आया। शालू बेचैन हो उठी। अगले दिन भी जब वह नहीं आया, तो दोस्तों से पूछा। किसी ने बताया कि वह बीमार है।

शालू से रहा नहीं गया। वह मोहित के घर चली गई। दरवाज़ा खुला तो सामने एक महिला थी, जिसकी गोद में एक नन्हा-सा बच्चा था।

“आप कौन?” महिला ने पूछा।

“मैं मोहित सर से मिलने आई हूँ।”

महिला मुस्कुराई और बोली, “आइए, बैठिए। मैं बुलाती हूँ।”

शालू की नज़रें घर के कोने-कोने में घूम रही थीं। तभी एक छोटी-सी लड़की दौड़ते हुए आई, “पापा! पापा!”

शालू के दिल में कुछ टूटा।

मोहित बाहर आया, शालू को देखकर मुस्कुराया, “अरे शालू! कैसी हो?”

लेकिन शालू का ध्यान उन बच्चों और उस महिला पर था। उसकी आँखों में आँसू छलक आए। वह जितना खुद को संभालना चाहती थी, उतनी ही बिखरती जा रही थी।

“मैं बस… आपसे मिलने आई थी। सुना था आप बीमार थे। अब ठीक हैं, तो अच्छा है।”

उसने जबरदस्ती मुस्कराकर कहा और जल्दी से वहाँ से निकल आई।

उस रात वह सो न सकी। उसने मोहित को अपना जीवनसाथी मान लिया था, लेकिन यह क्या? वह तो पहले से ही किसी का था!

कॉलेज में अब वह कटकर रहने लगी थी। मोहित को उसका बदला हुआ व्यवहार अखरने लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

एक दिन शालू खुद उसके पास आई, “सर, मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ।”

मोहित ने हैरानी से उसे देखा।

“मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया है। मैं अब इस शहर से जा रही हूँ। लेकिन जाने से पहले, मैं आपको एक बात बताना चाहती हूँ… मैंने आपको अपने पति के रूप में देखने लगी थी। लेकिन शायद यह मेरी सबसे बड़ी गलती थी। हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा।”

यह कहकर वह पीछे मुड़ी और तेज़ी से चली गई। मोहित वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा, जैसे कोई अपना दूर होता जा रहा हो।

उसकी आवाज़ बार-बार उसके कानों में गूंजती रही— “मैं आपको अपने पति के रूप में देखने लगी थी…”

मोहित को एहसास हुआ कि वह भी शालू से प्रेम करने लगा था। उसने कॉलेज में उसके दोस्तों से पूछा कि वह किस शहर गई है। जब पता चला कि वह भोपाल में है, तो उसने भी अपना ट्रांसफर वहीं करा लिया।

भोपाल पहुँचने के बाद उसने हर कॉलेज में जाकर पता लगाया, लेकिन महीनों बीत गए और वह शालू को नहीं ढूँढ सका।

फिर एक दिन, जब वह कॉलेज से निकल रहा था, तो उसने सड़क के किनारे एक जानी-पहचानी शक्ल देखी।

“शालू!”

शालू ने चौंककर उसकी ओर देखा।

मोहित कार से उतरा और उसके पास आया, “कहाँ चली गई थी तुम?”

शालू की आँखें भीग गईं, “आप यहाँ?”

“हाँ! मैं तुम्हें ढूँढने आया था।”

“लेकिन क्यों?”

“क्योंकि तुमने मुझे गलत समझा। जिस महिला को तुमने मेरी पत्नी समझा था, वह मेरी पत्नी नहीं थी। वह मेरी दिवंगत पत्नी की बड़ी बहन है, जो मेरे बच्चों की देखभाल कर रही थी। मेरी पत्नी तो हमारे छोटे बेटे के जन्म के समय ही…”

शालू की आँखों में अनगिनत सवाल थे, पर अब सारे जवाब उसके सामने थे।

“तुम्हारे जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”

शालू की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन इस बार ये आँसू दर्द के नहीं, खुशी के थे।
अगले दिन मोहित, शालू के घर गया। उसके माता-पिता पहले से ही दरवाज़े पर खड़े थे, जैसे उन्हें इस दिन का इंतज़ार था।

शालू की माँ ने मोहित को गले लगाकर कहा, “हमें तुम्हारी और शालू की शादी से कोई ऐतराज नहीं है। हमने कभी अपनी बेटी को इतनी खुश नहीं देखा। उसकी खुशी अब तुम्हारे हाथों में है।”

शालू की आँखों में एक नई चमक थी। आज उसके ख़्वाबों को सच में पंख लग गए थे। मोहित ने उसका हाथ थामा और कहा,

“अब और कोई जुदाई नहीं।”

और यूँ, उनकी कहानी सच्चे प्यार की एक मिसाल बन गई।

अनीता चतुर्वेदी…

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!