मेरी कहानी: शिक्षा का मूल्य — पालजीभाई राठौड़

जीवन में शिक्षा का मूल्य बहुत ही है। मैं बचपन से ही यह समझता था। प्राथमिक शिक्षा से ही मैंने तय किया था कि मैं शिक्षक बनुंगा।
मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था इस समय की बात है।गुजरात में दो साल लगातार अकाल पड़ा था। लोगों को मजदूरी देने हेतु सरकार ने तालाब में काम शुरू किया था। साप्ताहिक काम देते थे।परिवार के जितने सदस्य काम करते उसके लिए एक गैंग बनाई जाती थी। कारकुन उसकी हाजरी लेते थे। हमारी गैंग में मेरे माता पिता और मैं तीन सदस्य थे। सुबह से शाम तक यह काम करना पड़ता था।
सातवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा आई। मैंने पिताजी को कहा;’आज परीक्षा है मुझे स्कूल जाना पड़ेगा’। पिताजी ने कहा;’तुम स्कूल जाएंगे तो हमारी गैंग की एक हाजरी कट जाएगी। पगार कम आएगा। मैंने कहा कोई बात नहीं वार्षिक परीक्षा है परीक्षा तो देनी पड़ेगी। मेरे पिताजी शिक्षा का महत्व नहीं समझते थे ऐसा नहीं था। बल्कि एक हाजरी कट जाएगी वो चिंता थी। इस दौरान कारकुन हाजरी लेने के लिए हम जहां थे वहां आए वो हमारी बातचीत सुन रहा था।
कारकुन ने कहा;’ क्या बात है’?
मैंने कारकुन से जवाब दिया; ‘साहब आज मेरी वार्षिक परीक्षा है। मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता हूं। परीक्षा देने हेतु मुझे स्कूल जाना पड़ेगा।
मेरे पिताजी को चिंता है कि एक हाजरी कट जाएगी’।
कारकुन पढ़े लिखे थे बहुत भले आदमी थे। वो भी शिक्षा का मूल्य जानता था। उसने कहां;’बेटा, तुम्हारी हाजिरी में ले लेता हूं परीक्षा के लिए स्कूल जाओ बेस्ट ऑफ़ लक। मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मन में कारकुन शुक्रिया अदा किया। आज भी मुझे ये कहानी याद है। आज भी मैं ये कारकुन साहब को याद करता हूं।
शिक्षा का महत्व बहुत ज्यादा है। यह हमें ज्ञान और कौशल देती है। साथ ही हमारे व्यक्तित्व का विकास भी करती है। समाज में सफलता पा सकते हैं और समाज को सुधारने में भी योगदान देती है। हमारी विचारधारा और दृष्टिकोण का विस्तार होता है।अपने आसपास की दुनिया और उस से परे से ज्ञान से परिचित होते हैं।हम सही विचारधारा और निर्णायक कर्ता बनते हैं। समाज की समस्याओं समझने और समाधान करने की क्षमता हांसिल करते हैं।अपने धैर्य, चिंतन,मनन और संकल्प शक्ति को बढ़ावा देते हैं। शिक्षा से हम गरीबी और अज्ञानता को मिटा सकते हैं।शिक्षा शांति और भाईचारा स्थापित कर सकती है। शिक्षा से हम अपने मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास को संवारते हैं।
शिक्षा से हम अपने जीवन को बेहतर भविष्य के लिए तैयार होते हैं।
बाबासाहेब अंबेडकर ने भी कहा;’शिक्षित बने संगठित बने संघर्ष करें’।
“शिक्षा शेरनी का दूध है जो पियेगा वह दहाड़ेगा”।
शिक्षा पाने से मुझे प्राथमिक शिक्षक की नौकरी भी मिल गई। छत्तीस साल शिक्षक की फर्ज अदा की।आज निवृत्ति जीवन बड़ी शान से गुजार रहे हैं।मैं और मेरा परिवार सब खुश है।
पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनग रगुजरात