नारी शक्ति- – डॉ मीरा कनौजिया जी

मानव क्यों करता तू शोषण,नारी को अबला मत समझ।
युग बदल गया है अब ,समझा नहीं,अरे पुरुष तू नासमझ।
इतना तो समझ पुरुषत्व यह मंच है, केवल सभी बहनों का।
इतना कर लिया सभी बहनों ने प्रण, दुख अब न सहने का।
क्यों करता है बेचारी नारी पर, प्रतिदिन कोडो़ कीबरसात।
माहौल देख बच्चे चीखते चिल्लाते, करता बार-बार प्रहार।
बन जाएगी तेरी मार खा खा कर ,एक दिन दुर्गा का अवतार।
चंडी रूप धारण करके कर देगी, खड़ग लेकर तेरा संहार।
करते देवता भी आराधना, चरण झुकाते मांत अर्चन पूजन।
मत भूल मानव, तुझे क्या पता? ईश को भी मां दिया जन्म।
जन्म जन्मांतर तक नहीं चुका पाएगा ,कर्ज कभी नारी का।
आभास किंचित न असाध्य सहा कष्ट नारी ने प्रसव पीड़ा का।
हिंसा ,अत्याचार ,क्रूरता ,मानव तेरा ही फैलाया नारी- शोषण।
भूला क्यों? युगो -युगो से माता रूप में करती संतति पोषण।
नारी ने ही जग में, प्रति जगह ,चरम श्रेष्ठ ,परचम लहराया है।
भूल क्या? विदुषी नारियोंने ही शास्त्रार्थ में पुरुष को हराया है।
डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी