नोनु(कहानी) // डॉ इंदु भार्गव

नोनु एक प्यारी सी छोटी सी गुड़िया सुनीता की
सुनीता बहुत खूबसूरत बेटी बहन माँ पत्नी
उस की खूबसूरती के कारण उस की शादी एक बड़े पैसे वाले परिवार मे मांग के हुई थी!
शुरू मे सब सही चला साल भर मे सुनीता एक बेटी की माँ बन गईं बेटी अविकसित दिमाग की पति नशे का आदी धोखा खा के भी सुनीता ने प्यार से सब को अपना लिया था!
बेटी अभी महीने भर की थी सुनीता को देर रात मार के घर से निकाल दिया रात भर घर की दहलीज पर पडी रही पर ससुराल वालों का पत्थर दिल पसीजा नहीं, आखिर हार के सुनीता अपनी माँ के पास आ गईं, ससुराल वालों ने ले जाने से मना कर दिया और अखिर वो दिन आया जिस की आशंका थी सुनीता ने तलाक ले लिया! नोनु की परवरिश करने के साथ उस ने अपनी पढ़ाई शुरू की, सीढी दर सीढी सफलता चढती गईं! एक प्राईवेट विधालय मे अध्यापिका बन गई थी जिस आमदनी से माँ बेटी का गुजारा हो जाता था!
नोनु अब 8 साल की हो चुकी थी सुनीता की मेहनत रंग लाने लगी थी नोनु ने बिस्तर गीला करना छोड़ दिया था! कई बार नोनु के साथ दुर्घटना हुई पर हर बार नोनु को कुछ नहीं हुआ अब सुनीता सरकारी विध्यालय मे अध्यापिका बन गई थी!
याद हैं मुझे मेरे पास वो उस दिन नोनु की जिंदगी बचाने को 500 रुपये लेने आई थी मैंने रुपये देने के साथ उसे पूरा सहयोग किया उस दिन स्कुटर वाला नोनु को टक्कर मार गया था नोनु लगभग 5 फिट उप्पर उछली और जमीन पर गिर बेहोश हो गईं, अधिकतर लोग बोल रहे थे अच्छा हैं मर गई तो सुनीता की जिंदगी सुधर जाएगी! पर कोई उस माँ से पूछता उस पर क्या गुजरती होगी सुन कर!
हम हस्पताल गए डाॅक्टर ने कहा घबराओ नहीं मामूली चोट हैं डर के बेहोश हो गईं हैं मन को तसल्ली मिली! नोनु को ले हम घर आ गए!! सुनीता ने तय कर लिया था अब किराये के मकान मे बेटी के साथ रहेगी! इस घटना के बाद सुनीता ने मेहनत कर नोनु को पढ़ाना शुरू किया तीन साल मे नोनु को लगभग समान्य बना दिया था!!
अब नोनु11 साल की हो गई थी, सुनीता बराबर मुझे खत लिखा करती थी, कुछ दिन पूर्व दोनों माँ बेटी बाजार गईं थीं अचानक पत्थर की ठोकर लगने से नोनु गिर पडी और एक ज़रा सी ठोकर के बाद फिर नहीं उठी! आज सुनीता का खत मेरे हाथ मे था लिखा था तपस्या भंग हो गईं!!
मैं जब उस के पास गईं अस्तव्यस्त सी वो सुबक रही थी मैंने उसे समझाया होनी को कोई नहीं टाल सकता, रुक नहीं उठ आगे बढ़ अभी सफ़र बाकी हैं नोनु कहीं नहीं गईं तेरी ममता मे जिंदा हैं!!
सुनीता ने आंसू पोंछे अब नोनु की तस्वीर उस की अशेष यादे उस की जिंदगी जीने की वज़ह बन गई थी असहाय बच्चों की मदद करना उस की आदत बन गईं थीं!
आज सुनीता कहती हैं मेरी एक नोनु जैसी जाने कितनी माँओ की ऐसी नोनु हैं जो कहीं बोझ कहीं सहारा हैं!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर