परीक्षा — राजेन्द्र परिहार

एक गांव में एक छोटा बालक गुम हो गया।
एक राहगीर ने उसे रोते बिलखते हुए देखा तो उसे उस बालक पर दया आ गई।
उसने बालक को पास बुलाया और कुछ खाने को देकर सांत्वना देते हुए पूछा “बेटा तुम्हारा नाम क्या है?
तुम्हारे मां पिता कौन हैं उनके नाम क्या है? कौनसा गांव है?
बच्चा चूंकि अबोध बालक था और कुछ भी बता पाने में असमर्थ था।
उस व्यक्ति ने कुछ खिलौने लाकर दिए तो थोड़ी देर में बालक शांत होकर खेलने लगा।
थोड़ी देर बाद एक स्त्री आई और उसे
अपना बच्चा बताने लगी। उसके एक मिनट बाद ही एक और स्त्री रोती बिलखती आई और उसे अपना बच्चा बताने लगी।बच्चा इतना अबोध था कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है?
दोनों ही स्त्रियां उसे अपना बच्चा बताते हुए छीना झपटी करने लगी।
बच्चा इतना भयभीत हो गया और उसे समझ नहीं आया कि दोनों में से कौन उसकी
सगी मां है?
अंत में मामला राजदरबार में पहुंच गया और मुख्य न्यायाधीश राजा को भी मामला उलझा हुआ महसूस हुआ।
दोनों स्त्रियां अपनी जिद पर अड़ी हुई थी।
अंत में राजा ने आदेश दिया कि बच्चे के दो टुकड़े कर दोनों में बराबर बांट दिए जाएं।
जल्लाद तलवार लेकर आ पहुंचा।
परीक्षा की घड़ी आ पहुंची थी।
एकाएक उनमें से एक स्त्री बिलखकर आंसू बहाते हुए बोली “महाराज ऐसा हरगिज़ मत कीजिए।
ये बच्चा इसी स्त्री को सौंप दीजिए।
यह सुनते ही दूसरी स्त्री मन ही मन में खुशी हो गई। राजा ने निर्णय दिया कि मां वही
है जो अपने पुत्र के टुकड़े होते हुए कभी नहीं देख सकती है।
अत: जो मां रो रोकर कह रही है कि बालक के टुकड़े मत कीजिए और ये बच्चा इसी स्त्री को दे दीजिए। अतः जो स्त्री रो रही है जिसके हृदय में करुणा भाव है वही इस बालक की असली मां है उसे उसका बच्चा सौंप दिया जाए और इस दूसरी स्त्री जो दोषी है उसे कारावास में डाल दिया जाए।
राजेन्द्र परिहार “सैनिक”