प्रेम एवं कर्तव्य — सरोज चन्द्रा पालीवाल

प्रेम एवं कर्तव्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। प्रेम है तो कर्तव्य है। राष्ट्र से प्रेम है तो कर्तव्य की भावना जागृत होती है। बच्चों से, माता पिता से प्रेम के कारण ही कर्तव्यों का नियमन होता है। प्रेम स्वयं ही कर्तव्य के लिए प्रेरित करता है । मेरा ऐसा मानना है कि किसी भी प्राणी से लगाव अर्थात प्रेम हो ने पर हमें कर्तव्य बोध होता है।वह चाहे गाय हो, घोडा हो, श्वान हो, परिंदा हो कोई भी हो बच्चा हो बुजुर्ग हो हम अपने कर्तव्य पूरा करने लगते हैं। प्रेम कर्तव्य की धुरी है। मन में आस्था,ईश प्रेम होने पर हम पूजा, अनुष्ठान करते हैं। मंदिर जाते हैं। कर्तव्य पूर्ति के लिए प्रेम आवश्यक है ही। प्रेम सर्वोपरि है। प्रेम रुपी भावना से ही कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हैं। प्रेम हमें कर्तव्य पथ पर अग्रसर करता है। प्रेम हमें समर्पण सीखाता है। सामाजिक एवं नैतिक दायित्वों के पूर्ण कराता है।