Uncategorized

परमात्मकी छबि — छाया खत्री

 

खुली सड़क पर एक बूढ़ा भीख मांग रहा था। कड़ी धूप थी फिरभी वहीं बैठा था। धूप कम होनेकोही थी और एक बड़ीसी गाड़ी आकर खड़ी हो गई। बुढ़ा कुछ बोल नहीं सका जैसी मेरी किस्मत ।
किस्मतको गले लगाकर अपनी भूख मिटा रहा था। गाड़ी चालक बूढ़े बाबाके पास जा कर बैठ गया और दोनोंकी नजरे एक हुई। सवाल बहोत थे पर कोई कुछ नहीं बोला। गाड़ी चालक बाबा के कटोरेको देखता रहता था फिर अपनी उंगलियों से गिनता रहता था। बार बार गिनती करते देख बुढ़ा बाबा बोला इतनी बड़ी गाड़ी चलाते हो और गिनती नहीं आती। मेरे कटोरे के आमदनी तू क्यों गिन रहा हे। बस में यही तो देख रहा था गाड़ी चालक बोला। दादाजी आप इतनी धूप से लेकर शाम तक कटोरे पर जो जमा हुए हे पर आपने इनमें से कुछभी नहीं खरीदा और नहीं कुछ अपने लिए खाने का कोई बंदोंबस्त किया फिर धूप में क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो। बूढ़े बाबाके आंख से आंसूकी बरसात होने लगी, और गाड़ी चालक भी कुछ
शर्म में पड़ गया उसे लगा गलत सवाल तो नहीं कर गया। गाड़ी चालक बूढ़े बाबा के नजदीक आकर बैठ गया। और बाबा को पहले रोने दिया। फिर बाबा बोले बेटा हमारा तो जीवन एक सड़क जैसा हे।

वह जो इसकुल चल रहा हे ना वहां मेरा पोता पढ़ाई कर रहा हे उसके लिए ये सब…
मेरा बेटा और बहु अब इस दुनियामे नहीं हे तो मेरा जीवनको सड़क जैसा हो गया पर मेरे पोते को बहुत पढ़ाना हे। गाड़ी चालक सुनकर बोला बस इतनी सी बात
आपके पोते की पढ़ाई की जिम्मेवारी मेरी।
बुढ़ा बाबा ने मना करते हुए कहा उस इसकुल
में ऐसे कई बच्चे हे जिसको मदद की जरूरत हे। तू कितनेकी फीस भरेगा। गाड़ी चालक बोला हा ये तो सही बात हे।
दूसरे दिन की सुबह जब पोता स्कूल गया तो वह उछलता हुआ वापस आया और अपने दादा से बोला आज तो हमारी स्कूलमे भगवान आए हे। सब बच्चौकी पढ़ाई कराएगा।
जैसे जीवन एक सड़क जैसा हे उसी तरह जीवन में कब खुली सड़क पर भगवान मिल जाय ये भी एक अनहोनी हे।
छाया खत्री, यात्री, विसनगर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!