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राजर्षि स्वर्गीय ठाकुर मदन सिंह दांता की पुण्यतिथि // माया सैनी

 

पूरे प्रदेश में गूंजा दांता ठाकुर मदन सिंह का नाम
देश पर न्योछावर होने के लिए अपने 16 वर्षीय पुत्र को कर दिया दान

एक लाख रुपए दिए थे दांता ठाकुर ने 1962 में भारत के रक्षा कोष में दान
दांतारामगढ़ (गिरधारी सोनी) । स्व .राजर्षि दांता ठाकुर मदन सिंह  का जन्म ठाकुर  गंगा सिंह के यहां माता सुरज कँवर की कोख से रामनवमी  सन्  1919 को हुआ। इनका जन्म नाम हमीर सिंह था पर बाल्यकाल में ही उनकी बुआसा स्नेहवश इनको मदन सिंह कहा करती थी तभी से इनको इसी नाम से पुकारा जाने लगा । इन्होंने मेयो कॉलेज अजमेर में शिक्षा प्राप्त की  उसके बाद   फौज  सवाई मानसिंह गार्ड में द्वितीय लेफ्टिनेंट का पद संभाला द्वितीय विश्वयुद्ध में आप फौज के साथ  में तीन वर्ष तक यूरोप में रहे। विदेश से लौटने के बाद आप का विवाह  ठाकुर ओनार सिंह  कचोलियो की सुपुत्री नान्द कँवर के साथ हुआ । आपके पिताश्री ठाकुर गंगा सिंह का 2 जुलाई रविवार सन्  1944 को  निधन होने पर  14 जुलाई सन् 1944 को दांता गढ़ में इनका राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। आप चालीस गांवों के तीन साल तक राजा रहे । अंग्रेजों के भारत छोड़ने पर 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्री की समाप्ती पर भारत की स्वाधीनता की घोषणा की गई तब तो आप सार्वजनिक क्षेत्र में पहले की अपेक्षा अधिक रूचि लेने लगे ।

देश की रक्षा के लिए कर दिया अपना पुत्र दान

सन्  1962 में जब भारत – चीन युद्ध चल रहा था तब हिंदी चीनी भाई – भाई कहकर चीन ने पीठ में जो खंजर घोंपा था उसे पूरा देश आहत था। युद्ध के दौरान ही तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन राजस्थान की राजधानी जयपुर आए थे। रामनिवास बाग में मेनन की सभा चल रही थी। सभा में मैंने युद्ध में जन सहयोग देने के लिए कहा उसी समय दांता ठाकुर मदन सिंह मंच पर आए और मेनन को उस जमाने में एक लाख एक हजार रुपए नगद और एक सोने की मूठ की तलवार भेंट की। इसके साथ ही सभा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी व देशभक्ति के गगनभेदी नारे लगने लगे। इसी सभा के दौरान दांता ठाकुर मदन सिंह ने घोषणा की कि मैं अपने 16 वर्षीय पुत्र ओमेंद्र सिंह को भी मातृभूमि की रक्षार्थ प्राण न्योछावर करने के लिए अर्पित करता हूं। दादा ठाकुर सन् 1962 के युद्ध आर्थिक सहायता देने वाले प्रदेश के पहले और मातृभूमि की रक्षा के लिए पुत्र अर्पित करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। बीबीसी लंदन में भी उनके इस उत्कृष्ट कार्य की सराहना की गई। दादा ठाकुर ने अपने 16 वर्षीय पुत्र को रक्षा मंत्री मेनन को सौंप तो दिया लेकिन रक्षा मंत्रालय द्वारा भर्ती नहीं निकालने के कारण उनका चयन नहीं हो सका। दादा ठाकुर का सदा से ही प्रबल भाव रहा है जिसके चलते वे जीवनभर कुछ ना कुछ दान करते रहते थे।उनके इस देश सेवा के कार्य की सराहना तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने भी की थी। सन 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी दांता ठाकुर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को पत्र लिखकर युद्ध में आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी परंतु शास्त्री ने पुनः पत्र लिखकर किसी प्रकार की सहायता लेने से इनकार कर दिया। आज ही के दिन 23 दिसंबर 2001 को तांता की इस महान राजा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। जिस दिन इनका देहांत हुआ उस दिन दांता गांव ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में शोक की लहर छा गई उनकी अंतिम विदाई में पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय श्री भैरों सिंह शेखावत सहित देश के कई राजनेता एवं मंत्रियों ने पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
इनके इस राष्ट्र भाव को मैं अपने शब्दों में लिखता हूं—
(एक लाख रोकड़ दिया, कनक मूठ कृपाण ।
सुत ओमेंद्र को दिया देश हितार्थ दान।।)
उनके पुत्र आज भी सेवा के लिए रहते हैं हमेशा तत्पर

स्वर्गीय ठाकुर मदन सिंह दांता के पांच पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। जिनमें जेष्ठ पुत्र ठाकुर ओमेंद्र सिंह,  ठाकुर दिलीप सिंह, ठाकुर जितेंद्र सिंह, ठाकुर करण सिंह और पांचवे पुत्र ठाकुर राजेंद्र सिंह है। पांच पुत्रों में से जेष्ठ पुत्र ठाकुर ओमेंद्र सिंह का देहांत हो चुका है और अब चारों भाई आज भी पूरी निष्ठा और समर्पण के भाव से दांता ग्राम की जनता की सेवा के लिए हर समय तैयार रहते हैं।
आज भी फैल रहा है यश व कीर्ति का प्रकाश
दानवीर दांता वे अपने नाम के अनुरूप ही दानवीरता के धनी थे। दया, उदारता तथा जनता के प्रति आत्मय भाव उनका स्वभाव था। आज वो दीप बुझ चुका है । उनका सूर्य अस्त हो गया है । लेकिन फिर भी उनके द्वारा फैलाया गया यश व कीर्ति का प्रकाश आज भी कायम है । उस दीप में त्याग की बत्ती व सेवा का  घी जलता था । आंधी के थपेड़े भी उसे नही बुझा सके , वह योद्धा  जीवनभर लड़ता रहा । उसने अपना सबकुछ अपने ग्राम के विकास के लिए लुटा दिया । वह  कर्मवीर अपने  कर्म से कभी विमुख नही हुआ । वह मसीहा जिसने प्राकृतिक विपदा  ( बाढ़ ) में  21अगस्त सन् 1968 में  अपना सबकुछ दांव पर लगाकर एक सच्चे राजा की तरह अपनी प्रजा की रक्षा की । सादा जीवन उच्च विचार ही इस महान् विभूति के आभूषण थे । दांतारामगढ़ विधानसभा के सन् 1957, 1967,1977 में तीन बार विधायक रहने का गौरव हासिल किया था । एवं पुरे देश प्रदेश में जब भूस्वामी आंदोलन चलाया गया तब दांता ठाकुर मदनसिंह  ने ही आंदोलन का सफल संचालन किया था ।
1. दांता ठाकुर मदन सिंह
2. तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मैनन को एक लाख एक हजार रूपए नकद और एक सोने की मूठ की तलवार भेंट करते हुए दांता ठाकुर मदन सिंह
3. तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा ठाकुर साहब की सराहना में लिखा गया पत्र
4. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा ठाकुर साहब को लिखा गया पत्र।

माया सैनी

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