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साहित्य और समाज — प्रवीणा सिंह राणा 

 

साहित्य और समाज का संबंध गहरा और अटूट है। साहित्य समाज का दर्पण है, जो उसके विचारों, संघर्षों, भावनाओं और परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करता है। यह समाज की सच्चाइयों को उजागर करने के साथ-साथ उसे नई दिशा देने का माध्यम भी बनता है।
समाज की परिस्थितियां और बदलाव साहित्य को नए विषय और प्रेरणा प्रदान करते हैं। साहित्यकार अपने युग की घटनाओं और समस्याओं को अपनी रचनाओं में व्यक्त करते हैं। प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने ग्रामीण भारत की कठोर वास्तविकताओं को उजागर किया, जबकि रवींद्रनाथ ठाकुर ने मानवीय मूल्यों और आत्मिक गहराइयों को उभारा।

साहित्य का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह लोगों को जागरूक करता है, उनकी सोच को प्रेरित करता है और सामाजिक बदलाव का आधार तैयार करता है। स्वतंत्रता संग्राम के समय साहित्य ने जनजागरण का काम किया। कविताएँ, कहानियां और नाटक जनता को प्रेरित और संगठित करने में सहायक बने।
आज साहित्य में महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता जैसे मुद्दों पर चर्चा हो रही है। साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज को शिक्षित और संवेदनशील बनाने का माध्यम है। साहित्य और समाज का यह परस्पर संबंध मानवता की प्रगति का आधार है।

प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

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