संस्मरण — अजनबी फरिश्ता — आरती “आरजू’

यह घटना तब की है जब मैं लगभग 9वर्ष की थी। मैं और मेरा छोटा भाई स्कूल जाने को तैयार थे, जबकि सबसे छोटा भाई सुमित, जो कि उस वक्त लगभग डेढ़ साल का रहा होगा हमारे आगे-पीछे घूम रहा था। मम्मी उसको अक्सर एक हाथ में रस्सी बाँध कर, दूसरा छोर रसोई के दरवाज़े से बाँध देती थी ताकि वो घर से बाहर ना जा पाये। हम लोग मम्मी को बाय-बाय करते हुए स्कूल चले गए।
तक़रीबन एक घण्टे बाद ही मम्मी हमारे स्कूल आई, सबसे छोटे भाई को ढूँढते हुए। रोज़ वो वहीं दरवाज़े पर बैठ कर खेलता रहता था पर पता नहीं कैसे उस दिन रस्सी खोल कर निकल गया, मम्मी ने हमारे जाने के 2 मिनट बाद ही देखा पर वो कहीं नहीं मिला ती उन्हें लगा कि शायद हमारे पीछे-पीछे स्कूल निकल गया होगा।
पापा को कॉल किया गया वो भी कम्पनी से वापस आ गए, सुबह के 11 बज चुके थे पर सुमित का कहीं अता-पता नहीं चला। हमारे मकान-मालिक अंकल और उनके बेटा और बहु ने भी छुट्टी ली और सभी उसको ढूँढने में व्यस्त। हम बच्चे भी आस-पास की हर गली पार्क में देख आए पर उसे नहीं मिलना था नहीं मिला। पुलिस स्टेशन में कम्प्लेंट की गई। हम जिस गली में रहते थे उसे “कृष्ण मंदिर गुरुद्वारा” गली कहते थे क्योंकि एक किनारे पर कृष्ण मंदिर तो दूसरे किनारे पर गुरुद्वारा था। दोनों जगह लाउडस्पीकर पर भी उसकी पहचान बता कर ढूँढने की कोशिश की गई। शाम चार बजे तक भी जब वो नहीं मिला, सभी लोग निराश होने लगे।
पड़ोस के एक विजय भैया, गुड़गाँव के सदर बाज़ार की तरफ़ कुछ काम से गए तो उन्होंने ऐसे ही दुकानदार से पूछ लिया भैया यहाँ कोई बच्चा मिला है क्या? हमारे पड़ोस का एक बच्चा गुम गया आज। दुकानदार सुनते ही बोला कितना बड़ा बच्चा है भाई? भैया ने सुनते ही सुमित की उम्र और हुलिया, कपड़े सबके बारे में बताया क्योंकि सुबह से सभी लोगों से पूछते-पूछते उन्हें उसके बारे में सब याद ही था। वो दुकानदार बोला- हाँ भाई सुबह ही मेरे यहाँ काम करने वाले गोपाल की नज़र उस बच्चे पर पड़ी थी ग़ुब्बारे वाले के पीछे सड़क पार कर रहा था, तो उसे दुकान में ही ले आया था। सुबह से उसे लेकर आस-पास सभी जगह घूम आया पर उसके घर वालों का पता नहीं चला, दोबारा गया है देखो वापस आता है तो तुम्हें मिलवाता हूँ। विजय भैया ने उसी दुकान से फ़ोन कर के सारी बात बताई तो पापा कुछ देर में वहाँ पहुँचें तभी वो गोपाल अंकल सुमित को साइकल पर बैठा के पहुँच गए थे। पापा को देखते ही सुमित रोने लगा तो वो अंकल बोले सुबह से सब खा पीकर आराम से था आपको देखते ही रोने लगा। पापा ने उस दुकानदार और गोपाल का शुक्रिया अदा किया और उन्हें कुछ रूपए देने लगें लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया और बोले मानवता का फ़र्ज़ था यह तो। उस दिन वह गोपाल अंकल एक फ़रिश्ते की तरह लगे थे सभी को जिन्होंने सुबह से एक छोटे बच्चे का ख़्याल रखा और उसके घर को ढूँढने की कोशिश भी की। यह घटना बहुत पुरानी है पर आज भी भूले नहीं भूलती।
आरती ‘आरज़ू’