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संस्मरण– अंधविश्वास — डॉ रश्मि अग्रवाल

लोग कहते हैं अंधविश्वास अज्ञानता के कारण होता है पर यदि पढ़े-लिखे लोग अंधविश्वास को स्वीकारते हैं और इसी को ले कर हर कार्य करते हैं, तो परिजनों को बहुत मुश्किल होता है । पढ़े – लिखे ये ज्ञानी किसी अज्ञानी व्यक्ति से कम नहीं होते ।
मेरे ताऊ जी ( ताऊ ससुर ) पढ़े – लिखे इन्सान थे, एल. आई. सी. में मैनेजर की पोस्ट पर नियुक्त थे। इन धार्मिक आडम्बरों में उनका मन बहुत रमा रहता था। पंडितों के द्वारा बताए अनुसार शुभ दिवस की गणना करवा कर ही वो हर कार्य का शुभारंभ करते थे । उनके 3 बेटे और चार बेटियाँ थीं।
बड़े बेटे का विवाह हो चुका था । बहू बहुत सुशील और सुसंस्कृत थी । घर को उसने पूरी तरह जिम्मेदारी से सँभाल लिया था । सबके कार्य के लिए वह सदा तत्पर रहती थी ।
शादी के बाद मायके से उसका भाई उसकी विदाई कराने उसके ससुराल गया ।ताऊ जी ने उससे कहा, मैंने पंडितों को दिखा कर के पूछा है । पंड़ित जी ने कहा है, अभी मुहूर्त सही नहीं है । इसलिए बहू को मैं अभी नहीं जाने दूँगा । तुम अभी यहीं रहो जिस दिन साइत देख कर अच्छा दिन होगा, उस दिन बहू को तुम ले जाना। फिर रोज पंडित जी कोई न कोई अड़चन बताते और ये धर्म के नाम पर शुभ साइत की बात बना कर भाई को रोकते रहे । भाई नौकरी से छुट्‌टी ले कर बहन को लेने आया था ।छह-सात दिन बीत गए पर इनकी शुभ साइत निकल ही नहीं रही थी । अंत में एक दिन ताई जी (ताई सास ) गुस्से में जोर से बोलीं, अब कोई साइत – वाइत नहीं देखी जाएगी । आज बहू – भाई के साथ अपने घर जाएगी । कितने दिन तक भाई को यहाँ बैठा कर रखेंगे । उसकी भी नौकरी का सवाल है, कहीं अगर उसकी नौकरी छूट गई तो वह क्या करेगा ? अब मैं कुछ नहीं जानती, आज बहू जाएगी ही । ताऊ जी कुछ बोल ही नहीं पाए और कमरे से उठ कर आँगन में चले गए । ताई जी ने बहु को कहा तुम अपना सामान ले कर अटैची में लगा लो और भाई के साथ चली जाओ। बहू और भाई रिक्शा कर तुरन्त स्टेशन की ओर निकल गए ।
इससे यह द्योतक होता है कि अंधविश्वास के कारण कितने कार्य अधूरे रह जाते हैं। इंसान की तरक्की रुक जाती है ।कहीं-कहीं तो व्यक्तिगत हानियां भी हो जाती हैं । अंधविश्वास से लाभ कम और हानि ज्यादा है।अतः अंधविश्वास से सभी लोग बच कर रहें ।अंधविश्वास के नाम पर किसी बात को ज्यादा तूल न दें | गहराई तक सोचे -समझें और तब कार्य करें ।

डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’

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