संस्मरण– “जब तड़का को लगी आग” — नरेश चन्द्र उनियाल

उत्तराखण्ड का पौड़ी गढ़वाल जिला.. डबरालस्यूँ पट्टी का जल्ठा गॉंव। मैं तब दस बारह साल का रहा हूँगा.. अक्टूबर का महीना, दशहरे का सीजन था। गॉंव में रामलीला हो रही थी। आज लीला का तीसरा दिन था। तड़का बध और सीता स्वयंबर की लीला होनी थी। यह वह दौर था जब महिला पात्रों का किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे।
जबरदस्त लीला होती थी साहब. .. सारे मँझे हुए कलाकार… दूर दूर के गाँवों से लोग लीला देखने आते थे।
देवी दा (देवी प्रसाद उनियाल भैजी ) ताड़का का रोल अदा करते थे…जबरदस्त कलाकार थे… अपना मेकअप स्वयं करते थे… उनको ताड़का के रूप में देखकर महिलाओं और बच्चों की तो चीख ही निकल पड़ती थी। सिर से नख तक एकदम काले कपड़े, काले रंग से पुता चेहरा.. सिर पर बड़ी सी फैली हुई जटा, और मुंह से लटकती हुई लाल रंग के कपड़े से बनी हुई बड़ी सी जीभ…. लगता था साक्षात् ताड़का सम्मुख खड़ी हो गई है।
तो उस दिन का वाकया सुनाता हूँ साहब…
ताड़का (देवी भैजी), “मैं ताड़का हूँ, ताड़का हूँ…. तड़ तड़ तड़ तड़ करती हूँ” कहती हुई और हाथ में जलती हुई मशाल लेकर मंच की ओर बढ़े जा रही थी…मंच के पास आकर ताड़का ने अपने मुंह में मिट्टी का तेल भर लिया था।प्रतिवर्ष की तरह मशाल पर मिट्टी तेल की पिचकारी मारकर वातावरण को और भी भयावह बनाने का प्रयास कर रही थी ताड़का…
पर इस साल थोड़ा चूक हो गई…इस बार मिट्टी तेल की पिचकारी मारने के बाद मशाल और मुंह का कनेक्शन कट नहीं हो पाया, या कहें कि मशाल शायद देवी दा मुंह के अधिक पास ले आये। तेल की पिचकारी के साथ ही आग उनके मुंह की ओर बढ़ी और ताड़का की जटा पर आग लग गई।
उफ्फ… सभी लोग ताड़का की ओर लपके,आग बुझाने के लिए…जटा उठाकर फेंक दी गई..आग पर नियंत्रण पा लिया गया।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की ही कृपा रही कि ताड़का बने देवी प्रसाद भैजी का चेहरा नहीं जला, और अधिक नुकसान नहीं हुआ। थोड़े से बिघ्न और ब्रेक के उपरान्त ताड़का ने फिर से अपना रोल अदा कर दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी।
आज लीला ख़तम हो गई…. कई वर्ष ख़त्म हो गये, पर जब भी कहीं रामलीला का जिक्र होता है या रामलीला का सीजन शुरू होता है, तो लीला का वह दृश्य आज भी जबरन मुंह के सामने उपस्थित हो जीवंत हो जाता है।
नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।