संस्मरण — मंजू शर्मा

मनु दी आपकी चाय बहुत गर्म है जीभ जल जाएगी लाओ मैं फूंक मार दूँ कहता हुआ गोपाल जैसे ही मेरे चाय के कप को उठाने लगा में जोर से बोली ठहर जा नटखट,मैं सब जानती हूँ ,भाग यहां से नही तो मौसी मेरी भी पिटाई कर देंगी।और नवीन मानो नटखट हिरन शावक की तरह कुलांचे भरता वहां से भागा।अरे रुक तो कहते हुए जैसे ही अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाते हुए मैं हड़बड़ा कर उठ गई।नींद तो टूट गयी थी पर आंखों की कोरो पर नमी महसूस कर रही थी मैं … ये जिंदगी हमें हर रोज़ एक नये दिन से रूबरू कराती है। कभी खुशी बनकर कभी हादसा बनकर…कुछ पल हमारी जिंदगी में यादें बनकर दर्ज हो जाते है…चुलबुला शरारती पर सबका लाडला नवीन हमारी आंखों के सामने ही चिर निद्रा में लीन हो गया था। उसकी यादें मेरी जिंदगी का वो हिस्सा हैं जो कभी भी नहीं मरती, वो हमेशा सांसों के साथ चलती हैं। आज बचपन का एक हादसा वो आँखों के सामने गुजर गया।
मेरी मम्मी,मौसी लोग तीन बहनें हैं। गर्मी छुट्टियों में मम्मी के साथ हम सब बच्चे भी नानी घर जाते थे । हम सभी बहन-भाई नानी घर में खूब मस्ती करते…सब छोटे-छोटे थे लड़ाई भी उतनी ही करते…मेरी मौसी का लड़का मात्र नौ साल का बच्चा गोपाल…खूब शैतानियत करता
और मार खाने के डर से मेरी गोद में आ दुबक जाता,मनु दी… दीदी दीदी बचाओ मुझे…और उसकी मीठी तोतली-सी बोली सुन मैं उसको तुरंत गोद में उठा लेती मौसी बच्चों को चाय नहीं देती थी।
मैं जब भी चाय पीने बैठती वो आता और कहता दीदी चाय बहुत गर्म है आपकी जीभ जल जाएगी लाओ मैं फूंक मारकर ठंडी कर दूँ, बदमाश ठंडी करके तुरंत खुद ही पी जाता…सब ठहाका लगाकर हंसने लगे जाते और वो छोटे-छोटे कदमों से रफूचक्कर हो जाता उसकी ये बातें आज भी चेहरे पर मुस्कान ला देती है। नवीन समझदार भी बहुत था उसका स्वभाव सबसे अलग और इतनी छोटी-सी उम्र में ही अध्यात्म में उसकी रूचि देख सब अचंभित हो जाते…वो सुबह उठता और सबसे पहले उठकर नित्य कार्यों से निवृत्त होकर हनुमान चालीसा का पाठ करता और पानी भी उसके बाद ही पीता, हम सब उसे पंडित जी कहकर चिढाते रहते लेकिन उसको कभी बुरा नहीं लगा। मेरे नाना जी के घर के सामने ही रेल की पटरी गुजरती है। करीब 35 साल पहले शौच के लिए सब लोग बाहर जाते थे , सुबह 5 बजे का समय था सब सोये हुए थे और नवीन उठकर बाहर चला गया। उस दिन उसके मन को क्या सूझी…उसने रेल पटरी को पार करके दूसरी तरफ जाना चाहा, वहां सुबह-सुबह कुछ बच्चे खेलते रहते थे शायद इसीलिए…जैसे ही वो ऊपर चढने की कोशिश करने लगा उसका पैर पटरी पर बिछे तार में उलझ गया और सामने से ट्रेन को आते देख घबराहट के कारण ब्रेनहेमरेज हो गया, उसी समय उसकी सांसों ने विराम ले लिया। चारों तरफ के लोग इकट्ठा हो गए, घर में पूछा आपका बच्चा है क्या? नाना जी ने बिना देखे ही कह दिया नहीं हमारे तो सारे बच्चे सो रहे
लेकिन जब नजदीक जाकर देखा तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई और नाना जी बेहोश हो गए। उसके बाद तो घर में कोहराम मच गया।
मेरी हालत ऐसी काटो तो खून नहीं…समझ ही नहीं पाई ये सब क्या हो गया…सदमा बहुत गहरा था, घर में किसी को होश नहीं जो एक दूसरे को संभाल ले, ऐसा लग रहा था जैसे विधाता ने सब कुछ छीन लिया। मैं एकदम शांत-सी पागल जैसे रहने लगी जब भी सोने की कोशिश करती बस उसका ही चेहरा आँखों के सामने घूमने लग जाता
बाल मन उस घटना को सहन नहीं कर पाया और मैं डिप्रेशन में चली गई।
कहते है, होनी को कोई नहीं टाल सकता वो होकर रहती है ये विधाता के लेख है। आज भी जब कभी ट्रेन का सफर करती हूं या रेल की पटरियों को देखती हूँ तो मुझे नवीन की यादें दिल के किसी कोने को झकझोर सी जातीं हैं। मेरा दिल जार जार रोता है …ईश्वर से यही दुआ करती हूं मेरा नवीन जहां भी हो…खुश हो… कुछ हादसे ताउम्र स्मृतियों में कैद रहते हैं। ऐसा ही ये हादसा मैं कभी नहीं भूल सकती।
उगता सूरज अंतहीन रातों का अंधेरा दे गया।
जानें कितने सपने अपने भीतर छिपाए दर्दे समंदर वो चितेरा दे गया।।
मंजू शर्मा