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संस्मरण– “माता रानी की थप्पड़”– नरेश चन्द्र उनियाल

 

मेरा घर,परिवार आस्तिक है | पहले दादाजी पूजा-पाठ किया करते थे, फिर पिताजी और अब मैं | रोज सुबह शाम घर में बने देवस्थान पर दिया बत्ती होती थी | बहुत कम उम्र में शप्तशती की ऋचाएं याद कर ली थीं मैंने | माँ दुर्गा के उपासक हैं हम लोग |
बात मई 1987 की है | B.A. प्रथम वर्ष की परीक्षाएं हो रहीं थीं | कल हिन्दी का 2nd प्रश्न-पत्र होना था | पढ़ने में औसत विद्यार्थी रहा हमेशा |
रात्रि 11 बजे तक अध्ययन करता रहा, सुबह 4 बजे का अलार्म देकर सो गया | सुबह नियत अलार्म बजा, मैं उठा और अध्ययनरत हो गया | सारी किताब पर सरसरी निगाह डाली तो लगा कि अपनी तैयारी पूरी है | पुनः सो गया, पर दुबारा अलार्म देना भूल गया घड़ी पर, 7 बजे से परीक्षा होनी थी |
सुबह साढ़े छह बज गये.. मैं गहन निंद्रा की आगोश मे था कि अचानक एक थप्पड़ पड़ी मेरे दाएं गाल पर.. आँख खुली टक्क से और निगाह गई सामने दीवार पर टंगी दीवार घड़ी पर…
‘अरे बाप रे…ये तो बहुत देर हों गई…’
मैं उठा केवल मुंह धोया, मेज पर से प्रवेश पत्र, पेन (जो कल रात से ही रख दिए थे) उठाये और भाग चला कॉलेज की ओर… प्रभु कृपा हुई समय से पहुंच ही गया…. परीक्षा सकुशल सम्पन्न हो गयी।
लगभग छह सालों तक उस अनुत्तरित प्रश्न में उलझा रहा कि उस दिन वह थप्पड़ किसने मारा होगा??
छह साल बाद माँजी-पिताजी से इस घटना का जिक्र किया तो पिताजी ने तपाक से कहा कि, “वह थप्पड़ माँ दुर्गा ने मारा था |”
मुझे विश्वास है कि हाँ ऐसा ही हुआ था |
– नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।

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