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संस्मरण — ममता परिहार

 

बात विवाह के कुछ वर्ष बाद की है,पति देव का स्थानांतरण जिला अस्पताल मे हुआ था। जिसके कारण रहने के लिये सरकारी आवास भी मिला था।बहुत दिनों बाद किराये के मकान से मुक्ति मिली थी।थोड़ी स्वतंत्रता भी महसूस हो रही थी।
सरकारी कालोनी मे सुबह 10 के बाद सन्नाटा हो जाता है लगभग सभी घरों के पुरूष और बच्चे चले जाते है कुछ घरों की महिलाएं भी काम पर जाती है। उस समय हम भी पतिदेव के जाने के बाद कालेज जाते थे। हमारे घर के सामने एक छोटा सा शंकर जी का मंदिर था। रोज कालेज से आने पर हम देखते एक अधेड़ उम्र की औरत,मैले कुचैले कपड़े में मंदिर के चबूतरे पर बैठी रहती और धीरे धीरे कुछ बड़बड़या करती थी। पहले कुछ दिन तो हमें डर लगा क्योंकि उसकी हरकते पागलों वाली थी,लेकिन धीरे धीरे हमारा डर दूर हो गया। क्योंकि वो किसी को परेशान नहीं करती थी। उसकी एक बात हमे हमेशा खटकती थी वो मानसिक रूप से असंतुलित होते हुये भी बहुत सलीके से साड़ी पहनती,हल्का सा घूंघट भी डाले रहती।उसके हाथ मे एक पोटली रहती थी जिसमे वो न जाने क्या क्या रखती थी,उसमे कुछ तस्वीरे भी थी। हम उसकी गति विधि खिड़की से देखा करते थे,हमारी उत्सुकता बढती जा रही थी। एक दिन हमने देखा कि वो छोटे से प्लेट में आटा घोल रही है, हमें लगा शायद वो भूखी हैं।साहस कर हम उनके पास गये और खाने के लिए पूछा।
वो उठकर मेरे पीछे चल दी और दरवाजे पर बैठ गयीं, हमने उन्हे खाना दिया उन्होंने बहुत सलीके से खाना खाया। हमारी उत्सुकता और बढने लगी।
अब तो रोज का नियम हो गया, हमारे कालेज से आते ही वो दरवाजे पर बैठ जातीं और हम लगभग साथ ही खाना खाते। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी। हमारे न रहने पर वो घर का ध्यान रखती। पूरी कालोनी मे सब उनको ममता की चाची कहने लगे। एक दिन बातों बातों मे उन्होंने बताया कि जमीन के विवाद मे ग्राम प्रधान जो उनके पति के बड़े भाई थे,उन्होंने उनके घर मे आग लगवा दी। जब आग लगी तो वो मायके गयीं थीं, घर मे चार बच्चे और उनके पति थे। सब सो रहे थे और उसी मे झुलस गये एक एक करके सबने अस्पताल मे दम तोड़ दिया। इसी कारण उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। देवर जेठ ने घर से निकाल दिया। अपने बच्चों की फोटो पोटली से निकाल कर हमे दिखाते ही वो चीखने लगी, फिर अपने से शांत हो गयी। उनकी बात सुन मेरे मन में उनके लिये बहुत सहानुभूति हुई हमे रोना भी आया, हम दोनों मे बांडिंग हो गई थी,हम उन्हे खाना,कपड़ा शाल स्वैटर सब लाकर देते। हम कहीं बाहर जाते तो वो दिन रात मेरे घर के सामने रहती।
एक दिन कालेज आने के बाद जब हम उन्हे खाना दे रहे थे,अचानक उन्होने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे कड़े को छूती हुई बोली “बिटिया चुरिया नाही पनिहत हौ”(बिटिया चूड़ी नहीं पहनती हो)।
हमने हँसकर कहा “चाची कालेज जाते है इसलिए नहीं पहनते” हमने उन्हे समझाने का प्रयास किया।
लेकिन वो अपनी बात पर अड़ी रही, उन्होने हमें समझाया कि शादी के बाद कलाई सूनी अच्छी नहीं लगती,चूड़ी पहना करो कड़े नहीं।
हमने उनकी बात सुनी लेकिन उसपर अमल नहीं कर सके क्योंकि कालेज मे हम ही शादीशुदा थे तो क्लास में चूड़ियाँ बजती तो हम नर्वस हो जाते थे।
वो रोज आती खाना खाती,बाते करती चली जाती हमें लगा कि चूड़ी की बात उन्हें भूल गयी होगी।
दीवाली की छुट्टियाँ होने वाली थी हमने उनसे बताया”चाची हम मम्मी के घर जायेगे और भाई दूज के बाद आयेगे,आप को पैसे दे रहे है आप कुछ खा लिया करना”उन्होने उदास होकर हाँ कह दिया।
हमने उन्हे 200 रुपये दिये और वो चली गयीं।
हम अपनी पैकिंग मे लग गये सुबह जल्दी निकलना था।
दूसरे दिन सुबह की दरवाजे पर खटखट की आवाज हुई, इतनी सुबह कौन आया हमने सोचते हुये दरवाजा खोला।
सामने चाची खड़ी थी,उनके हाथ मे एक पालीथीन मे कुछ था।उन्होने हमें पकड़ाया और वोली”बिटिया इसमे चुरिया है लाल रंग की,नैहर खाली हाथ जैहौ, ई पहन कै जाव”। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हमने पालीथीन से चूड़ी के डिब्बे निकाले,लाल रंग की चूड़ियों का सुंदर सा सेट हमारे सामने था। मेरी आँखे भर आई,जिसे सब पागल समझते हैं उनमे इतना अपनापन। मेरा मन भारी हो गया।
चूड़ी देकर वो चली गई और हम मम्मी के घर आने को तैयार होने लगे। हमने वो चूड़ियाँ बहुत प्यार से पहनी।
वापस आने के बाद जब वो कई दिनों तक नहीं आयीं तो हमे चिंता होने लगी।
बहुत प्रयास के बाद पता चला के उनके घर वाले उन्हे ले गये हैं शायद उन्हे उनके अँगूठे के निशान की जरुरत थी।
तब से अब तक हमने उन्हे नहीं देखा,बहुत खोजा वो कहीं नहीं मिली। लेकिन उनकी शिक्षा हमने हमेशा याद रखी।तब से हमने कड़े पहनना छोड़ दिया और हमेशा चूड़ियाँ ही पहनते है,वो भी लाल रंग की।
ईश्वर जाने वो अब इस दुनिया में है या नहीं लेकिन उनकी दी चूड़ियाँ आज भी मेरी कलाई मे खनकती है।

ममता परिहार

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