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संस्मरण– परिश्रम का फल — प्रेममणी एसलीना 

 

यह रचना मेरी प्रिय बहन श्रीमती सरिता एक्का_आग्नेश मेरी को समर्पित है।

मेरे से छोटी बहन सरिता एक्का जी_आग्नेश मेरी
मैं जब उनके जीवन के संघर्ष को समझती हूं तो पाती हूं कि
उनके जीवन से हमे बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।

जब कभी भी संस्मरण की बारी आती है तो मुझे अच्छा लगता है की परिवार व मित्रजनों के जीवन से भी प्रेरणादायक संदेश निकल कर सामने आए।

इसी श्रेणी में सरिता जी भी है,मैं जब भी याद करती हूं उनके संघर्ष के दिनों को तो सब कुछ चलचित्र सा सामने आ जाता है।

हम एक साथ पले ak साथ बड़े हुए और सहेली की तरह साथ ही रहते थे घर,स्कूल सब जगह।
वो स्कूल में अपराह्न भोजन के वक्त अपनी सहेलियों को भी हमारे साथ ले आती थी हम हमारी सहेलियां साथ साथ रहते फिर अपने कक्षा में चले जाते।

वे बहुत शांत मिजाज की थी ज्यादा बाते नही करती थी,
मेरे विषय में कहूं तो मैं शांत भी गंभीर भी दोनो थी।

मैं पढ़ाई में अच्छी थी ,और बड़ी थी तो उसे भी पढ़ाती मुझे लगता उसे जल्दी समझ आना चाहिए लेकिन सब का दिमाग अलग होता है।
हम दोनो का दिमाग शायद अलग था ,या मैं जल्दबाज थी क्या पता।

असल में मैं बहुत जिद्दी थी पढ़ाई के लिए कुछ नही आता तो समझकर ही छोड़ती थी।

मैने उनके विषय में भी यही प्रयास किया,
तभी एक दिन मैं उन्हे पढ़ाने बैठी गणित के एक सवाल को कई बार समझाया उन्हे भी हल करने दिया किंतु वो चुप कुछ बोले ही न

मैं बार बार खुद को शांत करती फिर पूरी तन्मयता से उन्हे समझाती

अंत में मुझे बहुत गुस्सा आया मैं टीचर तो नही थी मेरे सब्र का बांध भी टूट चुका था
मैने गुस्से में उनकी चोटी पकड़ी और एक चांटा जड़ दिया
अब से कभी तुमको नही पढ़ाऊंगी जा रहो गधे बोल दिया।

तब से शायद ही कभी पढ़ाया हो उन्हे।
आज खुद वो कॉन्वेंट स्कूल में बतौर अध्यापिका काम करती है।

उनकी शादी भी मेरे से पहले करा दी गई,
पिता जी राजी नही थे
मैने कहा मुझे आगे पढ़ना है,अच्छा रिश्ता है मत छोड़िए इसलिए उनकी शादी पहले कर दी गई।

शादी के बाद उनके जीवन में कई कठिन पड़ाव आए,लेकिन उन्होंने सभी पड़ाओ को
पार किया
कैसे,कितना कठिन था ये उनसे अच्छा कौन जाने,हम तो मूकदर्शी थे।

किंतु एक चीज जो मैने देखी वो है विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लिए स्थान बनाना,

जब मैं तीसरी में थी एयर वो दूसरी में एक दिन मैं उनकी कक्षा में गई टीचर ने कहा ये तुम्हारी बहन है मैने कहा हां ,
टीचर ने भी उनके सिर पे छड़ी से मार दिया यह कह कुछ सीखो अपनी बहन से कितनी होशियार है ये और तुम?

मैने भी कहा था मैम ये घर में नही पढ़ती मैं पढ़ाती हूं फिर भी
क्या कहे इसीलिए टीचर की एक छड़ी उन्हे पड़ी थी सिर पर दुख तो हुआ अब क्या कहे टीचर है भई
अच्छे के लिए डांट मार तो सकती ही है।

इन दिनों घर का माहौल कुछ खराब था वो थी शांत क्या चलता था दिमाग में क्या पता हम तो हर परिस्थिति में जिद्दी से बस पास होना है तो होना है वो भी अच्छे नंबरों से,
और सरिता जी एक दो बार पास न हो सकी थी,

उस समय परीक्षा पत्र ऐसे बदले की कोई बच्चा दो तीन साल पास नही हुआ उनके बैच का कुछ थे जो पास होते,
और तो और उनको अब उसी स्कूल में लेते भी नही थे,ऐसे में कईयों के भविष्य बर्बाद हो गए।

जब रिजल्ट निकलता हम पास हो जाते ये हो जाती फेल फिर घर आकर बिस्तर में निढाल हो जाती,
अब बचपना तो था ही हम चिढ़ा देते फेलियर फेलियर फेल हो गई कह और खूब हंसते।

किंतु हमारे पापा हैरान परेशान एक दिन शाम की चाय में सब इकठ्ठे थे पापा ने कहा (चीनी मां)को बुलाओ यानी सरिता जी को।

फिर उनसे पापा ने पूछा आपको क्या करना है बताओ ???
वो तो क्या पता गुस्से में या नासमझी में कह दी
मैं नही पढ़ूंगी……

फिर बैठक में हंसी गूंज गई।
तब पापा ने कहा _कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा
आगे चलके काम आता है।

मैने कहा डैडी इसको न पार्लर का शौक है पार्लर करा दो अच्छा रहेगा।

फिर क्या था कम से कम दो तीन जगह इन्होंने काम सीखा एक दो जगह मैं भी इनके साथ जाती थी ,
सीखती वही थी मैं बस उनका साथ देती।

फिर हमने घर में ही छोटा सा पार्लर खोला
उनके हाथ ऐसे बैठे थे की उनके नाम से लोग आते थे।

दुल्हन सजाना,महेंदी लगाने मैं उनके साथ जाती क्योंकि वो ज्यादा बाते नही करती थी?मैं भी उनकी मदद करती थी।

कुछ दिन बाद में क्लीनिक पार्लर, में शादी के बाद एक और पार्लर में वो काम करती रही साथ ही घर में भी पार्लर करती और कई लोगो को सिखाती भी थी,सिलाई भी उन्होंने सीखी।

शादी के कुछ समय बाद उन्हें रायगढ़ से 40km दूर तमनार में शिफ्ट होना पड़ा,
उन्होंने खुद के मेहनत की कमाई से अपना सामान शिफ्ट कराया,

एक बार हम सब वेलांगनी तीर्थस्थल गए,
तब वे प्रार्थना करते हुए खूब रोई।

हम आश्चर्यचकित थे उनके मन में क्या था उन्हे ही पता था होगा।
संघर्ष तो कम नही था उनके जीवन में ।

उनके बच्चे कॉन्वेंट में पढ़ते और वो उन्हे पति के साथ पढ़ाती थी, बच्चे टॉप टेन में फर्स्ट सेकंड ही आते।
सिस्टर्स बच्चो से पूछते कौन पढ़ता है???
वे बोलते मम्मी पढ़ाती है,
एक बार सरिता जी ने सिस्टर से जॉब के लिए पूछा था।

बाद में उन्हें जॉब के लिए बुलाया गया।
फिर कुछ ही समय बाद उन्होंने तमनार के कॉन्वेंट स्कूल में बतौर टीचर काम में लग गई, आज भी वही टीचिंग करती है।

हमने सोचा ही नही था ,वो आज जो कुछ भी है,इसमें उनकी मेहनत ही है।और काबिल ए तारीफ भी।

शादी के बाद जब फिर उन्होंने पढ़ाई शुरू की एक ही बार में पास हो जाती दसवी फिर बारहवीं विश्वास नही होता किंतु उन्होंने पास कर लिया था,

जब स्कूल में पढ़ाती रही एजुकेशन की जरूरत बढ़ती गई,
बीए फिर एम ए,डी एल एड,लाइब्रेरी सब कुछ किया।

एक बात वो हंसी में कहती थी _क्या पता क्या पाप कर दिया पढ़ाई खत्म ही नही हो रही है,
फिर उनकी बातो से हम हंसते।

आज उन्होंने मेहनत,लगन व कठिन प्रयास से खुद को आत्मनिर्भर बना लिया।

उनके दोनो बच्चे जैस्मिन और साइमन भी मैरिट वाले बच्चे है।
पढ़ाई कर रहे है,
पति ख्रीस्त कुमार एक्का गवर्मेंट सर्विस करते है।
जिन्होंने भी अपनी मेहनत से ये नौकरी पाई।
सरिता जी
इस संस्मरण में चोट पहुंचाने वाली यदि कोई बात हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं,मेरा उद्देश्य सटीक है की कोई आपसे आगे बढ़ना सीखे।
आप इस जॉब के लिए योग्य है,ये आपकी जिद, मेहनत और लगन का नतीजा ही है,इसके लिए मैं पिता की हमेशा आभारी रहूंगी।

प्रिय पाठको,
इस संस्मरण के द्वारा मैं एक ही संदेश देना चाहती हूं,की कभी भी आप पढ़ाई या किसी भी क्षेत्र में असफल होते है तो बिल्कुल भी निराश न होए बल्कि निरंतर प्रयत्न करे,खुद से जिद करे आप पढ़ लिख कर कुछ बने अगर नही पढ़ सके तो भी हुनर के कोई न कोई काम सीखकर आत्मनिर्भर जरूर बनें और अपनी पहचान बनाए।

असफलताओं से सीखकर आगे बढ़े आप जरूर सफल होंगे।

प्रेममणी एसलीना सिमरन
नागपुर महाराष्ट्र

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