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संस्मरण – रुकमणी शर्मा

 

आज यादों की गुल्लक से एक यादों का सिक्का छनक कर मेरे होठों पर आकर अटक गया। वही बयां कर रही हूं। बात बहुत ही पुरानी है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।बोर्ड की परीक्षाए चल रहीं थीं
मैं बोर्ड की परीक्षा देने जा रही थी, मेरा रिक्शा ख़राब हो गया। रिक्शा चालक मुझे उतार कर चला गया।परीक्षा केंद्र अभी दूर था और समय कम।ग़ज़ब तो तब हो गया जब मैंने देखा पैसे तो घर भूल आयी।घबराहट से मैं रोने लगी। मुझे रोते देख एक बुजुर्ग भिखारी मेरे पास आए और मुझ से रोने का कारण पूछने लगे।मैंने रोते -रोते उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा, बेटी चिंता मत कर, ये ले दो सौ रुपये, मैं रिक्शा भी ले आता हूं और वो जल्दी से जाकर रिक्शा भी ले आए।मुझे रिक्शा में बिठा कर बोले, जाओ बेटी, जल्दी से जाओ, भगवान सब अच्छा करेंगे। मेरी आंखों से ख़ुशी के आंसू निकल रहे थे।मेरे मुहं से बस इतना ही निकला, दादा जी आज आप न आए होते तो शायद मैं परीक्षा ही न दे पाती।मैंने झुक कर उनके पैर छू लिए।उनके आशीर्वाद से मैंने समय पर पहुंच कर परीक्षा दी और परीक्षा भी बहुत अच्छी हुई । आखिरी परीक्षा थी।मैंने वहां जाकर उन्हें ढूँढने की बहुत कोशिश की परंतु वो मुझे नहीं मिले। मेरा रिजल्ट आया मैं फर्स्ट क्लास में पास हुई थी उस दिन भी मैं उन्हें ढूंढने गई वो मुझे नहीं मिले।मैं बहुत उदास हुई। सोचने लगी शायद वो फरिश्ते के रूप में मेरी मदद करने आये थे और चले गए।परंतु मैं उन्हें कभी भुला नहीं पाई वो आज भी मेरी यादों की गुल्लक में रहते हैं। ये मेरे जीवन का अविस्मरणीय संस्मरण है।

रुकमणी शर्मा
गुरुग्राम

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